उदयपुर। तमाम बाधाओं के बावजूद, उदयपुर में चल रहे 9वे उदयपुर फिल्म फेस्टिवल में न सिर्फ तीसरे दिन की फिल्में दिखाई गई बल्कि दूसरे दिन न दिखाई जा सकी फिल्म भी तीसरे दिन दिखाई गई। पूर्व निर्धारित हॉल छीन लिए जाने के बाद आज आनन फानन में एक बड़े अहाते को सिनेमा हॉल में तब्दील किया गया और एक अद्भुत प्रयोग का भारी संख्या में दर्शकों ने आनंद लिया ।
आज सबसे पहले भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की बदहाल स्थिती को प्रदर्शित करती हुई दस्तावेजी फिल्म क्राइ टू बी हर्ड
दिखाई गई। दुनिया भर के शरणार्थीयों को संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत कुछ सार्वभौम अधिकार प्राप्त हैं और भारत भी इस समझौते का पालन करने के लिए वचनबद्ध है। यह फिल्म यही जांच करती है कि इनका कितना पालन हो रहा है। फिल्म भारत के कुख्यात डिटेंशन सेंटर्स के भीतर की हकीकत भी दिखाती है। फिल्म के निर्देशक सातवीगन ने बताया कि यद्यपि वे हिंदी और शरणार्थियों की भाषा बर्मी दोनों ही नहीं जानते थे पर उन्हें तमिल जानने वाला एक रोहिंग्या शरणार्थि मिल गया इस प्रकार एक तरह से कायनात ने ही उनकी मदद की । महत्वपूर्ण बात ये है कि यह इस फिल्म का प्रीमियर शो था।
इसके बाद राजस्थान की सात युवा किशोरी फिल्मकारों की पहली फिल्म पहली बार प्रदर्शित की गई। अंजलि खटीक, शीला बैरवा, टीना, कृष्णा, लक्ष्मी, माया और ममता की ये लघु फिल्में अलग अलग विषयों को उठाती हैं जिनमें बाल विवाह और लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव जैसे मुद्दे शामिल थे वहीं कुछ फिल्में लड़कियों के फुटबॉल खेलने, उनकी चयन के अधिकार और उनके सपनों के बारे में भी बात करती थी ।
इसके बाद तीन बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रांची के आदिवासी फिल्मकार बीजू टोपो की दस्तावेजी फिल्म टापू राजी दिखाई गई। टापू राजी उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दशक में अंडमान निकोबार जा बसे झारखंड के आदिवासियों के जीवन, उनकी संस्कृति और उनकी समस्याओं को दिखाती हैं। फिल्म के बाद बीजू टोपो से लंबी बातचीत हुई जिसमें उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माण की विधिवत शिक्षा न प्राप्त होने के बावजूद अपने गुरु मेघनाद टोपो के मार्गदर्शन और जीवन की सच्चाइयों को देखने के कारण वे फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सफल हो पाए । फिल्म की गीतकार एवं गायिका कुर्दूला कुजूर ने इस अवसर पर एक मधुर लोकगीत प्रस्तुत किया ।
प्रसिद्ध गुजराती फीचर फिल्म हुं हुंशी हुंशीलाल दिखाई गई। समानांतर सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाने वाली यह फिल्म तीन दशक से अनुपलब्ध थी और दो वर्ष पूर्व ही इसका रिस्टोरेशन हुआ। फिल्म में मोहन गोखले, दिलीप जोशी, रेणुका शहाणे, मनोज जोशी और गुजराती थिएटर के कई जाने माने कलाकार हैं। सिनेमेटोग्राफी नवरोज़ कॉन्ट्रेक्टर है और संगीत रजत ढोलकिया का है। यह एक सांगीतिक फिल्म हैं जिसमें कुछ गीत नसरुद्दीन शाह और रघुवीर यादव की आवाज में हैं। फिल्म के बाद फिल्म के निर्देशक संजीव शाह ने इस फिल्म के निर्माण के दौरान के कई मजेदार किस्से साझा किए ।
दिन की आख़िरी प्रस्तुति इस बार के कान्स फिल्म फेस्टिवल में पहली भारतीय पुरस्कार विजेता बनी युवा फिल्मकार पायल कपाड़िया की पहली फिल्म ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग दिखाई गई। यह फिल्म 2016 में एफटीआईआई में हुए छात्र आंदोलन से शुरू होती है और फिल्म संपूर्ण भारत में 2016 से 2019 के बीच हुए छात्र आंदोलनों और उनके दमन की कहानी कहती हैं।
अंत में अगले वर्ष फिर मिलने के वादे के साथ फेस्टिवल की कन्वेनर रिंकू परिहार ने सभी देश भर से आए हुए अथिति फिल्मकार और दर्शकों का शुक्रिया अदा किया ।