-दो दिवसीय नवम युवा इतिहासकार राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ
-आठ तकनीकी सत्रों में भारतीय इतिहास, संस्कृति और संविधान पर युवा इतिहासकार कर रहे मंथन
-दो दिन के मंथन में संविधान में भारतीय मूल्यों की अवधारणा को तलाशेंगे भारतीय इतिहास संकलन के शोधार्थी
उदयपुर, 8 फरवरी। भारत सनातन से ही लोकतात्रिक गणराज्य है। सिकंदर के आक्रमण के समय भी पोरस के साथ अन्य जनपद गणराज्यों ने उसका मुकाबला किया, लेकिन भारत के गौरवशाली इतिहास से परहेज रखने वाले इतिहासकारों ने इन तथ्यों को सदैव दबाया। यही वजह है कि संविधान में शामिल मोहनजोदड़ो, गुरुकुल, श्रीकृष्ण, धर्म, शिव, श्रीराम, हिमालय, लक्ष्मी, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष के चित्र शामिल हैं, जो अपने आप में हमारे सनातन मूल्यों का संग्रहण ही है। बस इन्हें भारतीय विचार के अनुसार कभी समझाया नहीं गया।
यह बात भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. राधामोहन दास अग्रवाल ने शनिवार को यहां जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ में ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति और संविधान’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में कही। विद्यापीठ की मेजबानी में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली एवं माधव संस्कृति न्यास नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित इस सेमिनार में डॉ. अग्रवाल ने संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आम्बेडकर के कथन को उल्लेखित करते हुए कहा कि संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता, संविधान का प्रयोग करने वाले अच्छे-बुरे हो सकते है। अगर नीयत सकारात्मक है तो वे संविधान की अच्छी बातों का अनुसरण करेंगे और जिनकी नीयत लाभ उठाने की है वे उसमें अपने फायदे की बात निकालेंगे।
उन्होंने रामायण, महाभारत काल का उल्लेख करते हुए कहा कि मानवाधिकार का उदाहरण अहिल्या का प्रसंग है। उन्होंने लंका पर आक्रमण को आतंकवादियों को उनके घर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के ही कमलापति त्रिपाठी ने देश का नाम भारत रखने के पक्ष में अपना पुरजोर आग्रह रखा था, लेकिन दुर्भाग्य से इंडिया देट इज भारत लिखा गया। उन्होंने पहले संविधान संशोधन को नागरिक अभिव्यक्ति पर लगाम लगाने वाला बताते हुए इमरजेंसी से पहले इंदिरा सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधन का भी जिक्र किया जिसमें प्रधानमंत्री व लोकसभा स्पीकर के चुनाव को कानून से ऊपर होने का दर्जा दे दिया गया।
संविधान मन-मस्तिष्क से निकल कर पॉकेट में आ गया – प्रो. ईश्वरशरण
-भारतीय इतिहास संकलन योजना के संकलन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष व संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो. ईश्वरशरण विश्वकर्मा ने कहा कि आज संविधान मन मस्तिष्क से निकलकर पॉकेट में आ गया है ऐसे में युवा इतिहासकार मौन नहीं रह सकता। भारतवर्ष में गांव से लेकर राज व्यवस्था तक गणराज्य की प्रणाली वैदिक काल से ही स्थापित थी। ग्राम गणराज्य भी वैदिक काल में स्थापित था। यदि संविधान में ग्राम गणराज्य नहीं है तो राम राज्य भी नहीं है। उन्होंने शोधार्थियों को संविधान निर्माण के दौरान विभिन्न सांसदों की टिप्पणियों को भी पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि वे टिप्पणियां ही बता देंगी कि संविधान निर्माण के दौरान किसकी क्या मंशा रही।
नागरिक कर्तव्य और संस्कारों की पालना का धर्म ही हमारा संविधान – डॉ. पाण्डेय
-इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा कि यदि हम संविधान की उद्देशिका (प्रिएम्बिल) को पढ़ेंगे तो स्वतः ही स्पष्ट हो जाएगा कि यह एक हिन्दू राष्ट्र के संविधान की प्रस्तावना है, न कि किसी सेक्यूलर राष्ट्र की। भारतीय संस्कृति और मूल्यों में तो न्याय और धर्म सदैव नागरिक संस्कारों में समाहित रहा है। उन्होंने श्रीराम द्वारा बालि के वध के प्रसंग को एक राजा का न्याय बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में अनुजवधु को पुत्री माना जाता है, इस संस्कृति को तोड़ने का पाप करने वाले बालि का वध किया गया था। बालि ने जब पूछा कि राम आप मारने वाले कौन, तब राम ने कहा कि यदि पाप का दंड नहीं दिया जाए तो उसका भागी राजा स्वयं होता है और अभी वे चक्रवर्ती सम्राट दशरथ का पुत्र राम हूं, तुम्हारा राज्य भी मेरे शासन के अधीन है, अभी भरत मेरा प्रतिनिधि बनकर शासन संभाल रहा है, अगर मैं तुम्हें दंड नहीं दूंगा तो इस पाप का भागी मेरा भाई भरत होगा। डॉ. पाण्डेय ने कहा कि नागरिक कर्तव्य और संस्कारों की पालना का धर्म ही हमारा संविधान है।
वैदिक काल का राजधर्म नैतिक दायित्व का परिचायक – प्रो. सारंगदेवोत
-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि भारत का इतिहास केवल एक कथा नहीं, बल्कि वह नींव है जिस पर हमारी संस्कृति और संविधान टिका हुआ है। भारतीय संस्कृति सहिष्णुता, विविधता और एकता का प्रतीक रही है, और यही मूल्य हमारे संविधान में भी निहित हैं। भारतीय इतिहास में प्राचीन काल से ही न्याय, धर्म और प्रशासन की मजबूत परंपरा रही है। वैदिक काल में राजधर्म की अवधारणा ने शासकों को कर्तव्यनिष्ठ और नैतिक रूप से उत्तरदायी होने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना से पहले एक पूरे पृष्ठ पर ‘सत्यमेव जयते’ के साथ तीन मुख वाले शेर का चित्र अंकित है। यह दर्शाता है कि भारत में स्वाधीन गणतंत्र होगा, भारत के ऊपर भारतीयों के अतिरिक्त और किसी का शासन नहीं होगा। संविधान के भाग तीन में मूल अधिकारों का वर्णन करने से पहले रामायण का दृश्य है जो कर्तव्यों के निर्वहन के पश्चात अधिकार की चर्चा करता है।
मेटा का चिह्न ही काल का डमरू है – शुक्ल
-भारत का समग्र इतिहास परियोजना के समन्वयक डॉ. नरेन्द्र शुक्ला ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज के मेटा का चिह्न वास्तविकता में काल का डमरू है। भारत में काल से ज्यादा महत्वपूर्ण मूल्य और धर्म है। हमारा विधान सम्यक पर आधारित है। हमारे पास 5 हजार वर्ष का सम्यक विधान है। भारतीय मूल्य और संस्कृति को संविधान में कैसे प्रकट किया जाए, हमें इस पर कार्य करना है।
300 से अधिक युवा इतिहासकार पहुंचे
संगोष्ठी समन्वयक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल और संगोष्ठी सहसमन्वयक डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि संगोष्ठी में देश भर के 300 से अधिक युवा इतिहासकार भाग ले रहे हैं। कुलपति प्रो एस एस सारंगदेवोत ने अतिथियों को स्मृति चिह्न प्रदान कर अभिनंदन किया। स्वागत उद्बोधन इतिहास संकलन समिति के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने दिया। मंच पर भाजपा शहर जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़, देहात जिला अध्यक्ष पुष्कर तेली, पूर्व अध्यक्ष चन्द्रगुप्त सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेश मंत्री मिथिलेश गौतम भी विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन थे। भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव हेमंत धींग मजूमदार, सह संगठन मंत्री संजय मिश्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक हेमेन्द्र श्रीमाली, पूर्व विधायक धर्मनारायण जोशी, वरिष्ठ इतिहासविद रोशन महात्मा, हरकलाल पामेचा, डॉ. महावीर प्रसाद जैन, लक्ष्मण सिंह कर्णावट आदि का भी स्वागत किया गया। संचालन डॉ निर्मल पांडे ने किया। स्वस्ति वाचन, सरस्वती वंदना डॉ. कुल शेखर व्यास और संकल्प वाचन डॉ. महामाया प्रसाद चौबीसा ने किया।
इनका होगा बाबा साहब आप्टे सम्मान
-क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगन लाल बोहरा ने बताया कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में इतिहास के प्रति जीवन भर समर्पित रहने वाले व्यक्तित्व डॉ. देव कोठारी व डॉ. महावीर प्रसाद जैन को बाबा साहब आप्टे सम्मान से अलंकृत किया जाएगा। इसी तरह, हिम्मत लाल दुग्गड़, रोशन महात्मा व हरकलाल पामेचा को वरिष्ठ कार्यकर्ता सम्मान प्रदान किया जाएगा।