बच्चों को मिल रही जीवन में अपनायें जाने वाले आचार-विचार एवं व्यवहार की शिक्षा

उदयपुर। हिरण मगरी सेक्टर 4 स्थित श्री वर्धमान जैन श्रावक संस्थान उदयपुर में श्री कुंद कुंद कहान वीतराग विज्ञान शिक्षण समिति उदयपुर द्वारा आयोजित आवासीय बाल संस्कार शिक्षण शिविर में बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा है और उन्हें स्कूली शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक एवं संस्कार शिक्षा का भी अनुभव प्राप्त हो रहा है।
शिविर के निदेशक जिनेंद्र शास्त्री ने बताया कि शिविर में तीन वर्गों में बच्चों को शिक्षाएं दी जा रही है। पहले शिशु वर्ग, दूसरा बाल वर्ग एवं तीसरा किशोर वर्ग के रूप में बच्चे ज्ञान अर्जन कर रहे हैं। मंगलवार को पंडित आशीष शास्त्री दिगंबर डॉक्टर अंकुल शास्त्री भोपाल आदि विद्वानों से बच्चों ने पूजन विधि सीखी। बाल संस्कार प्रशिक्षण शिविर में बच्चे लगातार विद्वानों से संस्कारों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। जीवन जीने की कला सीख रहे हैं। धार्मिक शिक्षा के साथ ही नीतिगत शिक्षा का ज्ञान भी ले रहे हैं। बड़ों से कैसे बात की जाती है, उनके साथ कैसे व्यवहार किया जाता है, उनका सम्मान और उन्हें इज्जत देने के क्या और कैसे तरीके हैं उनके बारे में बताया। बाल संस्कार शिविर के साथ युवा भी जुड़ चुके हैं। लगभग 200 बच्चे जो संस्कार शिविर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
समिति उपाध्यक्ष भावेश कालिका ने बताया कि तीन वर्गों में चल रहे शिक्षा संस्कार शिविर का निदेशक जिनेन्द्र शास्त्री खेसारी में निरीक्षण भी किया गया। हर वर्ग के बच्चों की कक्षाओं में जाकर के बच्चों से संस्कार शिविर के बारे में जानकारी ली एवं उनसे प्रश्नोत्तरी भी की। बच्चों ने हर सवाल का सटीक एवं विस्तार से उत्तर भी दिया।
समयसार मंडल के विधानकर्ता पण्डित आशीष शास्त्री दिगंबर, डॉक्टर अंकुर शास्त्री भोपाल एवं शाश्वत अनन्या जैन ने संगीतमयी विधि-विधान के साथ पूजा करवाई एवं स्वाहा की आहूतिया दिलवाई। श्रावक-श्राविकाओ ने अपने अपने स्थान पर खड़े होकर पूर्ण भक्तिभाव से विथान में पूजा की। पण्डित जी ने आपा पर ज्ञान के बारे में बताया। ज्ञान और राग में भेद बताते हुए मोक्ष फल की आहूतिया दिलवाई। पण्डित जी ने कहा कि अपने कल्याण के लिए गुरुओं का सानिध्य जरूरी है। उन्होंने गुरु की महिमा बताते हुए कहा कि गुरुदेव के बिना जीवन का उद्धार नहीं हो सकता है। मेरे और पर का कोई भेद नहीं है यानि मैं किसी का कर्ता नहीं हूं। पुण्य और पाप दोनों बन्ध के कारण है। समयसार के लिए अर्घ्य समर्पित करवाया। चौतन्य और अचेतन्य को ज्ञानी लोग भोगते। ज्ञानी हमेशा निशकित रहते हैं तभी वह हर समय निर्भय रहते हैं। संसारी जितने भी होते हैं उन सबकी निर्झरा होती है। अपने में ही सन्तुष्ट होने से ही निर्झरा होगी।

By Udaipurviews

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