बड़ा भाई कांधे पर लादकर ले जाते थे स्कूल, पिता को फीस देने गिरवी रखनी पड़ी थी जमीन
उदयपुर, सुभाष शर्मा:”एक कमजोर मन मजबूत शरीर को नहीं चला सकता’ किन्तु एक मजबूत मन कमजोर शरीर को आसानी से चला सकता है” यह चरितार्थ करके दिखा दिया आदिवासी उपखंड कोटड़ा के नि:शक्त नेताराम ने। सकारात्मकता के साथ उनके आत्मविश्वास तथा आत्मबल की यह कहानी दूसरे असहाय लोगों के मन को बल देने वाली है।
नेताराम बचपन में पोलियो के चलते वह अपने पैरों पर चलने से असमर्थ हो गए लेकिन उनकी पढ़ाई की जिद के चलते उन्हें अपनों और परायों का साथ भी मिला और गणित और विज्ञान विषय के शिक्षक बन गए। हाल ही 12 दिसम्बर को उन्होंने गोगुंदा क्षेत्र के रावलिया कला के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पद भार ग्रहण कर लिया। नेताराम के सरकारी सेवा में आने से माता—पिता ही नहीं, बल्कि परिवार के सभी सदस्य बेहद खुश हैं।
चार भाइयों में तीन नि:शक्त
आदिवासी उपखंड कोटड़ा के रणेश गांव के नूराराम की चार संतान हैं। जिनमें सबसे बड़े भाई करनाराम के अलावा नेताराम और उसके दो अन्य भाई हुसाराम और भैराराम भी नि:शक्त हैं। यूं तो नेताराम सामान्य थे लेकिन स्कूली शिक्षा के दौरान पोलिया के शिकार हो गए।
नि:शक्तता रोक नहीं पाई उच्च शिक्षा, किसी से मिली घर में शरण तो साथी दिव्यांग ने दी थी ट्राईसाइकिल
नेताराम बताते हैं कि नि:शक्तता उनकी शिक्षा में आड़े नहीं आई। जब प्राइमरी की शिक्षा उन्होंने घर पर ही की और बड़े भाई करनाराम और भैराराम उसे कंधों पर लादकर परीक्षा दिलाने ले जाते थे। नौंवी के लिए घर से तीन किलोमीटर दूर भांडेर गांव के सरकारी स्कूल में नियमित पढ़ाई करनी थी। एकबारगी लगा कि पढ़ाई छूट जाएगी कि नेताराम को तब गांव के भूरीलाल गरासिया की मदद मिली। जिन्होंने नेताराम को ना केवल घर में जगह दी, बल्कि उसके खाने तथा पढ़ाई की भी व्यवस्था कराई। गांव में बिजली नहीं होने पर वह केरोसिन के जरिए जलाई जाने वाली चिमनी की रोशनी में पढ़ते थे। पड़ोस गांव के दिव्यांग साथी कांतिभाई ने अपनी ट्राइसाइकिल इसलिए उसे दे दी कि ताकि नेताराम अपनी पढ़ाई जारी रख सके। जिसके जरिए वह नियमित स्कूल जाते। स्कूल शिक्षकों ने भी उसका हौंसला बढ़ाया और दसवीं में 70 प्रतिशत अंक से पास हुआ।
वकील हुसाराम ने उदयपुर के स्कूल में कराया दाखिला
नेताराम बताते हैं कि दसवीं में अच्छे अंक लाने के बाद गांव के एडवोकेट हुसाराम गरासिया ने उसका दाखिला उदयपुर के राजकीय फतह सीनियर सैकण्डरी स्कूल में ही नहीं कराया, बल्कि पास ही समाज कल्याण छात्रावास में रहने को कमरे की व्यवस्था कराई। स्कूल के पास जूते बनाने वाले शू—मेकर ने नेताराम को घुटनों में पहने वाले विशेष शूज तैयार किए ताकि वह उसे स्कूल में आने—जाने में कम से कम तकलीफ लो।
कॉलेज की फीस भरने को पैसे नहीं थे तो पिता ने गिरवी रख दी थी जमीन
बाहरवीं मैथ साइंस विषय से पास करने के बाद नेताराम को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना था। वह बीएससी बीएड करना चाहता था लेकिन फीस भरने को पैसे नहीं थे। ऐसे में पिता ने अपने बेटे की शिक्षा अनवरत जारी रखने के लिए अपनी आधी कृषि भूमि गिरवी रख दी थी। अब दिव्यांग स्कूटी योजना के तहत उसे स्कूटी भी मिल चुकी थी। जिसके जरिए वह नियमित कॉलेज तो और पढ़ाई जारी रखी। इसी दौरान नेताराम को शिक्षक एवं अधिवक्ता राजेंद्र समीजा मिले, जिन्होंने नौकरी लगने तक उसके रहने—खाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। वह हर महीने नेताराम को आर्थिक मदद करते ताकि वह अपनी पढ़ाई रुचि से कर पाए। 75 फीसदी अंकों से बीएएसी बीएड की डिग्री लेने के बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी जारी रखी और अध्यापक भर्ती परीक्षा-2022 में चयनित हो गए। नेताराम अपनी सफलता के लिए माता—पिता के अलावा उसे सहयोग करने वाले लोगों—शिक्षकों तथा परिवारजनों को श्रेय देते हैं। नेताराम का कहना है कि वह शिक्षा क्षेत्र में ऐसा नेक काम करने का प्रयास करेंगे, जिससे शिक्षा का ढांचा हमेशा के लिए सर्वश्रेष्ठ हो पाए।
दिव्यांगता को दी चुनौती, पढ़ाई की जिद से खुलती रही राह और नेताराम बन गया शिक्षक
