उदयपुर, 1 अक्टूबर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में मंगलवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि मन की शुद्धि बहुत मायने रखती है। यदि मन शुद्ध हो तो शक्ति व शान्ति के साथ सिद्धि भी मिल सकती है। संसारियों की कामना यही रहती है कि हमें शक्ति और मन की शान्ति प्राप्त हो। इनका मन अस्थिर रहता है, जबकि सिद्धात्माओं का मन स्थिर रहता है। प्रभु कहते हैं कि जिसकी श्रद्धा जीव तत्व पर होती है, वही जिन (जिनेश्वर देव) पर श्रद्धा कर सकता है। याद रखें कि शान्ति हमारा मार्ग है जिस पर धैर्य के साथ चलकर हम सिद्धि की मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं। संसारियों की जितनी रूचि धन कमाने में होती है अगर उतनी रूचि धर्म कमाने में हो जाए तो बेड़ा पार हो जाएगा। संसारी संसार बढ़ाने वालों की प्रशंसा करके और अधिक भार कर्मा हो हो जाते हैं, जबकि वर्तमानजीवी साधक संसार घटाने वालों की प्रशंसा करके अपना संसार घटा लेते हैं। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कर्म बंध की विशद विवेचना करते हुए फरमाया कि भावों के तीव्र परिणामों में आयुष्य का बंध नहीं होता, अपितु स्थिर भावों में आयुष्य का बंध होता है। दूध में जावण डालने पर दही जमता है। दही को बिलौते-बिलौते जब मक्खन ऊपर आता है तो ऐसे मक्खन जैसे भाव शुद्ध हों तो सद्गति का बंध होता है और कचरा ऊपर आवे तो ऐसे कचरे जैसे अशुद्ध भावों से संक्लिष्ट परिणाम सामने आता है। फलतः दुर्गति का बंध होता है। एक बार जैसा आयुष्य बंध जाता है, वह कैंसिल नहीं होता। अतः ज्ञानी व्यक्ति सोते-जागते, उठते-बैठते, अकेले में, समूह में हर वक्त जागरूक एवं सावधान रहते हैं ताकि उत्कृष्ट भावों की स्थिरता में आयुष्य का बंध हो। हमें हमेशा अपने परिणाम प्रशस्त रखने चाहिए। इससे पूर्व श्रद्धेय श्री विनोद मुनि जी म.सा. ने आराधना दिवस के अवसर पर तीन बार तीर्थंकर चालीसा का एवं एक बार विजय चालीसा का सामूहिक संगान कराया। संघ मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि आगामी 7 अक्टूबर को आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. का जन्म दिवस पर सप्त दिवसीय आयोजन किया जाएगा, जिसमें जप-तप-त्याग की लड़ी लगेगी।
शान्ति के मार्ग पर चलकर धैर्य के साथ हम सिद्धि की मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं : आचार्य विजयराज
