फतहनगर। केआरजी सभागार में चल रही प्रवचन श्रृंखला के सातवें दिन भगवत प्राप्ति के विविध मार्ग में ज्ञान मार्ग एवं भक्ति मार्ग पर प्रकाश डालते हुए रासेश्वरी देवी ने स्पष्ट किया कि ज्ञान केवल अज्ञान को समाप्त करता है। ज्ञान द्वारा वास्तविक आनंद की प्राप्ति असंभव होती है। साथ ही ज्ञान मार्ग में प्रवेश करने के लिए ही बहुत सी शर्तें पूर्ण करनी होती है। विवेक,सम(मन पर नियंत्रण),दम(इंद्रियों पर नियंत्रण),तितिक्षा(सुख,दुख,मान-अपमान में सम रहना) उपरति(संसार की वस्तुओं से उदासीनता), श्रद्धा,समाधान(चित् की एकाग्रता) मनन, निद्यासन,धारणा,ध्यान आदि को आत्मसात कर ही व्यक्ति ज्ञान मार्ग में प्रवेश का अधिकारी बन सकता हैं। तत्पश्चात आत्मज्ञान की अनुभूति एवं पंच महाभूत पर विजय तमो और रजोगुण पर विजय प्राप्त होती है। पर ज्ञानी भी सत्व गुण पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। सत्व गुण पर विजय प्राप्ति के लिए उन्हें भी भक्ति करनी होती है। तत्पश्चात उन्हें ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही ज्ञानी का कभी भी पतन होने का खतरा बना रहता है। सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलयुग में कई ज्ञानी हंस एवं परमहंस हुए हैं। यथा जगतगुरु शंकराचार्य, मधुसूदन सरस्वती, सुखदेव परमहंस,उद्धव आदि ने भी अन्तोगत्वा भक्ति की। भक्ति मार्ग पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया कि भक्ति भगवान की गुह्यतमम् शक्ति होती है। इसी को प्रेम भी कहते हैं। भक्ति दो प्रकार की होती है। सिद्धा भक्ति एवं साधना भक्ति भगवान की तीन
प्रमुख शक्तियों जीव शक्ति, माया शक्ति एवं स्वरूप शक्ति में से स्वरूप शक्ति के 3 रूपों संवित शक्ति (ज्ञान), संघिनी शक्ति(अस्तित्व) एवं ल्हादिनी शक्ति(प्रेम) अर्थात भक्ति। यह भक्ति दो प्रकार की होती है। सिद्धा भक्ति जो गुरु कृपा के द्वारा अंतःकरण की शत प्रतिशत शुद्धि के उपरांत प्रदत्त की जाती है। इसके पूर्व व्यक्ति को स्वयं उसे सिद्धा भक्ति को प्राप्त करने के लिए अपने मन रूपी पात्र को सामर्थ्यवान बनाने हेतु गुरु द्वारा निर्देशित साधना भक्ति करनी होती है। यह साधना भक्ति पांच प्रकार के भावों के साथ की जा सकती है। शांत भाव,दास्य भाव, सख्य भाव, वात्सल्य भाव एवं माधुर्य भाव। इसमें माधुर्य भाव से की गई साधना भक्ति सर्वोत्तम होती है,क्योंकि इसमें सभी भावों का समावेश होता है। इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन में ईश्वर प्राप्ति के लिए वास्तविक आनंद की प्राप्ति के लिए भक्ति के मार्ग को चुनकर गुरु द्वारा निर्दिष्ट साधना भक्ति का अनुसरण करते हुए भगवत प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए। भक्ति के लिए कोई शर्त नहीं होती समस्त व्यक्ति स्त्री,पुरुष,बालक,युवा,वृद्ध भक्ति के अधिकारी होते हैं।