बच्चों की मोबाईल की लत को छुड़वानें में कारगर साबित हो रहा बाल संस्कार शिविर

उदयपुर। श्री कुंद कुंद कहान वीतराग विज्ञान शिक्षण समिति की ओर से श्री वर्धमान जैन श्रवण संस्थान हिरणमगरी सेक्टर 4 में चल रहे बाल संस्कार शिक्षण शिविर में लगातार बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। यह शिविर बच्चों में मोबाईल की लत को छुड़वानें में कारगर साबित हो रहा है।
शिविर निदेशक डॉक्टर जैनेंद्र शास्त्री ने बताया कि बच्चे इस शिविर में उत्साह के साथ भाग ले रहे हैं। आज जहां बच्चे मोबाइल में खोए रहते हैं, विभिन्न प्रकार की सामग्रियां देखने से उनमें धर्म और संस्कार के प्रति अलगाव पैदा होने लगा है। साथ ही उनमें कुसंस्कार पनपने की सम्भावनाए लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यह संस्कार शिविर बच्चों में धर्म ज्ञान के साथ ही सुसंस्कार समाहित करने में सफल हो रहा है।
शास्त्री ने बताया कि शिविर में धर्म शिक्षा प्राप्त हुए करते हुए बच्चे देव शास्त्र हितोपदेश जिनवाणी और गुरु के बारे में तो ज्ञान प्राप्त कर ही रहे हैं साथ ही वह मुनिराज के 28 मूल गुणों के बारे में भी बताया और समझाया जा रहा है। शिक्षकों ने मुनिराज के 28 मूल गुणों के बारे में बच्चों को बताते हुए कहा कि मुनिराज के पंच महाव्रत होते हैं जिनमें अहिंसा, सत्य, अचोर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह आते हैं। पांच समिति में ईर्ष्या, भाषा,एषणा, आदान निक्षेपण, प्रतिष्ठापन आते हैं। पंच इंद्रिय विजय में स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु तथा कर्ण इंद्रीय पर विजय।छह आवश्यक तत्व में समता, स्तुति, वंदना, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण एवं कायोत्सर्ग आते हैं। अन्य गुणो में जो स्नान नहीं करते हैं, जो दांत साफ नहीं करते हैं, जो लैश मात्र भी शरीर पर आवरण नहीं रखते हैं, जो पृथ्वी पर एक करवट ही सोते हैं, दिन में एक बार आहार लेते हैं खड़े-खड़े हाथों से आहार लेते हैं और केश लोचन करते हैं। बच्चों ने इस तरह की जानकारी प्राप्त कर धर्म ज्ञान की अलग ही अनुभूति प्राप्त की।
इधर गुरूवार को दो दिवसीय नियम सार मण्डल विधान प्रारंभ हुआ। पंडित डॉ. मनीष शास्त्री, पंडित अंकुर शास्त्री, पंडित एवं पंडित आशीष शास्त्री के सानिध्य में विधान करवाया गया। उपस्थित श्रावकों ने अर्घ्य समर्पण करते हुए विधान में आहुतियां दी। गुरूवार को विधान का दूसरा दिन था। पंडित डॉक्टर मनीष शास्त्री, पंडित अंकुर शास्त्री,एवं पंडित आशीष शास्त्री के सानिध्य में विधान करवाया गया। उपस्थित श्रावकों ने अर्घ्य समर्पण करते हुए विधान में आहुतियां दी। पंडित जी ने कहा कि जब हम सभी विकल्पों से मुक्त होते हैं तब ही हमें आत्मा की अनुभूति होती है।  आत्मा के चौतन्य स्वरूप को जानने के लिए हमें सभी विकल्पों से मुक्त होना आवश्यक है। पूजा तो हमारी सामान्य भक्ति में आती है लेकिन आत्मा को प्राप्त करने के लिए परम भक्ति आवश्यक है। परम भक्ति किए बिना आत्मा का कल्याण संभव नहीं है।

By Udaipurviews

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