बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष
उदयपुर, 5 दिसंबर (पंजाब केसरी): बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर ने भारतीय समाज में अस्पृश्यता के खिलाफ कई महत्वपूर्ण संघर्ष किए। उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि दलित समाज के अधिकारों का संरक्षण संवैधानिक तरीके से हो। 1939 में बम्बई विधानमंडल में दिए गए अपने भाषण में बाबा साहेब ने स्पष्ट रूप से कहा कि “जब देश के हित और दलितों के हितों में विरोध होगा, तब मैं दलितों के हितों को प्राथमिकता दूंगा।” यह उनके दलित समाज के प्रति गहरे प्रेम और निष्ठा को दर्शाता है।
बाबा साहेब को 1926 में मुंबई विधानमंडल का सदस्य मनोनीत किया गया था, जहां उन्होंने दलितों के हितों के लिए निर्भीकता से संघर्ष किया। उनका संघर्ष न केवल भारतीय संसद में, बल्कि समाज में भी दिखाई दिया। धनंजय कीर ने लिखा है कि बाबा साहेब विधानमंडल में बैठे होते हुए भी दलितों के अधिकारों के लिए लगातार सवाल उठाते थे, जिससे सरकार की नाक में दम आ जाता था। उन्होंने कई बार यह सुनिश्चित किया कि सरकारी पदों पर योग्य होने के बावजूद दलितों को तिरस्कृत न किया जाए।
बाबा साहेब ने हमेशा संवैधानिक मार्ग से दलितों के अधिकारों की रक्षा की। उनका यह मानना था कि भारतीय समाज में दलितों के हित केवल संवैधानिक तरीके से ही सुरक्षित किए जा सकते हैं। 1928 में सायमन कमीशन के सामने भी उन्होंने दलितों के अधिकारों की वकालत की और उन्होंने कहा कि “व्यस्क मताधिकार चाहिए, विधानसभा की सदस्यता पूरी तरह से निर्वाचन के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए।” साथ ही, उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि दलितों के लिए आरक्षित सीटें होनी चाहिए।
बाबा साहेब ने 1930 में नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय बहिष्कृत वर्ग के अधिवेशन में कहा था, “हमारी दयनीय अवस्था का अंत अंग्रेजों के राज में नहीं होगा, बल्कि यह स्वराज्य के संविधान द्वारा हमारे हाथों में राजकीय अधिकार आने से ही होगा।” यही कारण था कि बाबा साहेब ने स्वराज्य को अपना मुख्य उद्देश्य माना और इसके लिए संघर्ष किया।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में बाबा साहेब ने ब्रिटिश सरकार के शासन के खिलाफ खड़े होकर कहा कि, “ब्रिटिश सरकार की नौकरशाही शासन व्यवस्था के स्थान पर भारत का शासन जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता का शासन होना चाहिए।” उन्होंने साफ कहा कि अंग्रेजी सरकार हिन्दू समाज के सामाजिक और आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है, और अगर हम अपने अधिकारों की रक्षा चाहते हैं तो हमें राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त करनी होगी।
बाबा साहेब ने अपनी पूरी राजनीतिक यात्रा में अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने गोलमेज सम्मेलन में एक घोषणा पत्र प्रस्तुत किया जिसमें यह मांग की गई कि “भारत के सभी प्रजाजन कानून की दृष्टि से समान हैं, और उन सभी के नागरिक अधिकार भी समान हैं।” साथ ही, उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि देश के केंद्रीय और प्रांतीय विधानमंडलों में अस्पृश्य वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
यह बाबा साहेब का संघर्ष था जिसने भारतीय संविधान में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा की। उनका यह योगदान भारतीय राजनीति और समाज में सदैव स्मरणीय रहेगा। उनका यह विश्वास था कि जब तक दलितों को राजनीतिक और प्रशासनिक आरक्षण नहीं मिलेगा, तब तक उनका उत्थान संभव नहीं है। यही कारण है कि उनका जीवन और संघर्ष भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणा बना है।