भारत के संविधान के 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा विषय पर संसद में लिखित चर्चा में सांसद रावत ने रखा मुद्दा
-कांग्रेसी सरकारों पर उठाई उंगली, कहा-कांग्रेस नेताओं और सरकारों ने अनुच्छेद 342 के मुद्दे को कभी नहीं उठाया
उदयपुर, 15 दिसंबर। उदयपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद मन्नालाल रावत ने पिछले कई सालों से बहुचर्चित संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के मुद्दे को उठाया और कहा कि अनुसूचित जातियों के धर्मान्तरित लोगों के लिए जो नियम संविधान में लागू किए गए वे आज तक अनुसूचित जनजाति के लिए लागू नहीं करने से धर्मान्तरण का बहुत बडा कारण बन गया है। इससे जनजातियों के संवैधानिक हक छीने जा रहे हैं। कांग्रेस सरकारों ने जनजातियों के प्रति दोहरा व्यवहार लागू कर उनकी एकता को तोडने के साथ ही विदेशी मिशनरी के भरोसे छोड दिया।
सांसद श्री रावत ने संसद में भारत के संविधान के 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा विषय पर लिखित चर्चा में भाग लेते हुए जनजातियों के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 342 के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया।
सांसद रावत ने चर्चा में कहा कि संविधान में उल्लेखित सामाजिक न्याय जिसमें आरक्षण, संरक्षण व विकास की यदि बात करें तो संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 महत्वपूर्ण है। अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जातियों को परिभाषित किया गया है जबकि 342 में अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने का प्रावधान है। सन् 1950 में जारी अधिसूचना के अनुसार अनुसूचित जातियों में एक शर्त लगाई गई है जिसके अनुसार वे लोग एससी की परिभाषा में मान्य नहीं होंगे जिन्होंने हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म को छोड़ दिया है, परंतु यह प्रावधान अनुसूचित जनजातियों के लिए लागू नहीं किया गया।
यह विसंगति बहुत गंभीर है जिसे इसी सदन में 24 नवंबर 1970 को डॉक्टर कार्तिक उरांव जी ने उठाया था। धर्मांतरित सदस्यों को एसटी की परिभाषा से बाहर करने का डीलिस्टिंग आंदोलन चलाया। संसद के 348 सांसदों का समर्थन भी प्राप्त किया। उनके अनुसार यह विसंगति जनजातियों के पिछडे रहने का मूल कारण है और यह असंवैधानिक है, असामाजिक है, अनैतिक और अवैधानिक है, अमानवीय है। और साथ ही यह अलोकतांत्रिक भी है। परन्तु लोकतंत्र के इस मंदिर में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के संवैधानिक हक के इस मुद्दे को समर्थन नहीं दिया।
जनजातियों के संस्कृति का नाशक बना प्रावधान : सांसद रावत ने चर्चा में कहा कि यह प्रावधान आगे जाकर जनजातियों के संस्कृति का नाशक बना और उसे कांग्रेस की सरकारों ने समर्थन दिया। यह धर्मान्तरण का बड़ा कारण बना। संवैधानिक हक़ छिनने का भी कारण बना। महात्मा गांधी के अनुसार भारत में धर्मांतरण अत्यंत ठीक नहीं है संस्कृति के लिए घातक है, परंतु कांग्रेस की सरकारों ने इसे आगे बढ़ाया ऐसा लगता है। स्वतंत्रता के बाद यह कांग्रेस की एक सोची समझी रणनीति बनी है। लेकिन कांग्रेस ने आखिर यह क्यों किया, जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों को क्यों छीना। यह भी विचारणीय है।
जनजाति के प्रति कांग्रेस का दोहरा व्यवहार : सांसद रावत ने चर्चा में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जब एक भाषण दिया तब जनजाति विकास के लिए अजायब घर पद्धति को अपनाया अर्थात आदिवासी जैसे हैं वैसे ही जीवन करें। वे कहते थे-आप जहां रह रहे हैं आप अपने तरीके से रहो। परंतु उन्होंने पादरी वैरियर एल्विन को अनुमति देकर नॉर्थ ईस्ट और मध्य भारत के जनजाति क्षेत्र में भेज दिया। जबकि भारत के अन्य नागरिकों, नेताओं को और समाजसेवी संस्थाओं को इन क्षेत्रों में जाने से रोक दिया। यह कांग्रेस का दोहरा व्यवहार जनजातियों के विकास, भारतीय चिंतन और समावेशी विचार के एकदम विरुद्ध लगता है। इसी पद्धति को बाद की कांग्रेस की सरकारों ने अपनाया। कांग्रेस पार्टी ने बाबासाहेब अंबेडकर के युग निर्माणी चिंतन-शिक्षित बनो,संगठित रहो और संघर्ष करो के विपरीत जाकर जनजातियों की एकता को तोड़ा है, विदेशी मिशनरी के भरोसे छोड़ दिया और आरंभ में शिक्षित बनने से वंचित किया है। गरीब बनाए रखा।
प्रधानमंत्री मोदी जनजाति को साथी मानते हैं : सांसद रावत ने लिखित चर्चा में कहा कि कांग्रेस की जनजाति विकास की नीति में थोड़ी बहुत सहानुभूति ही दिखती है परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने इसे समानुभूति एंपैथी में बदला है। मोदी ने जनजातियों के साथ अपनत्व के भाव से खड़े हैं वे जनजाति को अपना साथी मानते हैं। अपने में से एक मानते हैं। भारतीय विचारों को लेकर मानते हैं उन्हें लाइबिलिटी नहीं बल्कि एसेट मानते हैं। इसी कारण जनजाति नायकों के गौरव को आगे बढ़ाने के लिए आजादी के अमृत महोत्सव में उन्होंने सैकड़ों कार्यक्रम करवाए और 15 नवंबर को क्रांति सूर्य भगवान बिरसा मुंडा जनजाति गौरव दिवस मनाने की घोषणा की है। पावन स्थल मान गढ़ धाम और उलीहातु की भी यात्रा की है।
संविधान की हत्या की कांग्रेस ने : सांसद रावत ने कहा कि कांग्रेस ने संविधान की हत्या की है। नेहरू ने 17 बार, इंदिरा गांधी ने 28 बार, राजीव गांधी 10 बार और मनमोहन सिंह ने सात बार संविधान संशोधन किए और अपने हितों के लिए गलत नीतियां लागू की। अन्य संवैधानिक संस्थाओं की अवहेलना की।
जनजाति क्षेत्र में अराष्ट्रीय तत्व हावी हुए : सांसद रावत ने चर्चा में कहा कि देश की जनजातियां भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। उसका कारण यह है कि सामाजिक न्याय के विषय को समय रहते धरातल पर नहीं उतारा जिससे आदिवासी अंचल में कानून व्यवस्था भंग होती चली गई और इन क्षेत्रों में अराष्ट्रीय तत्व लगातार हावी होते चले गए। यह सब कांग्रेस की गलत नीतियों के कारण हुआ। यह अघोषित समर्थन कांग्रेस का ही रहा है।
370 हटाने के बाद राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित हुई : सांसद रावत ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा संविधान के एक अस्थाई धारा 370 हटाने के बाद राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित हुई। एक प्रधान, एक विधान और एक निशान का सपना पूरा हुआ। यह भी महत्वपूर्ण है कि इस धारा रहने के बाद जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को पहली बार आरक्षण का लाभ मिला। इससे नौकरियां, राजनीतिक और शैक्षणिक योजनाओं को लाभ ले पाए।