-सुभाष शर्मा
कहा जाता रहा है कि मेवाड़ जिस पार्टी संग गया, राजस्थान में सरकार उसी की ही बनी। हालांकि विधानसभा चुनाव 2018 में यह मिथक टूट गया और कम सीट वाली कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई। इस विधानसभा चुनाव में यह मिथक फिर से पुरानी कहानी दोहराएगा या नहीं। यह शनिवार को मतपेटियों में कैद हो जाएगा लेकिन जाहिर 3 दिसम्बर को मतगणना समाप्ति के साथ होगा।
मेवाड़ में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ के अलावा भीलवाड़ा जिले में शामिल हैं, लेकिन नए संभागों के गठन से पहले उदयपुर संभाग में वागड़ के डूंगरपुर और बांसवाड़ा तथा कांठल का प्रतापगढ़ जिला भी शामिल माना जाता रहा। इस बार राजस्थान में पुराने संभागवार से ही मतदान और मतगणना की प्रक्रिया जारी है। इस तरह मेवाड़ की 28 सीटों पर हार—जीत को लेकर मिथक पर चर्चा जारी है।
उदयपुर संभाग की 28 सीटों पर फिलहाल 14 पर भाजपा, 11 पर कांग्रेस तथा 3 सीटों पर अन्य का कब्जा है। राजस्थान में यह पहली बार हुआ, जब मेवाड़ में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी सरकार नहीं बना पाई। इससे पहले यहां से सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी की ही सरकार बनती रही और इसे मिथक मान लिया गया।
विधानसभा चुनाव 2023 में एक बार फिर मेवाड़ का मिथक चर्चा में है। हालांकि अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही। पूर्व में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होता रहा। किन्तु अब आदिवासियों की नई पार्टी भारतीय आदिवासी पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी अपना मत प्रतिशत बढ़ाया है। मौजूदा विधानसभा में भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक भी शामिल हैं।
सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा इस बार मेवाड़ में अपनी जीत का दावा पेश कर रही हैं। कांग्रेस को विकास कार्य और अपनी योजनाओं पर भरोसा है, वहीं भाजपा को पीएम पर भरोसा है। इस बार बागी प्रत्याशियों ने भी दोनों ही पार्टी के घोषित प्रत्याशियों की नींद उड़ा रखी है। भाजपा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी पूरी ताकत से वोटर्स को अपने पक्ष में जोड़ने के लिए जुटे रहे तो कांग्रेस से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े, सीएम अशोक गहलोत सहित अन्य नेताओं ने सभाएं और रोड शो किए। अब देखना है कि इनमें कौन कितना सफल रहते ह़ै?
उदयपुर जिले में है आठ विधानसभा क्षेत्र
उदयपुर जिले में 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। जिनमें छह पर भाजपा तथा दो पर कांग्रेस काबिज है। उदयपुर शहर में भाजपा के ताराचंद जैन का सीधा मुकाबला कांग्रेस के गौरव वल्लभ से है। गुलाबचंद कटारिया के असम के राज्यपाल बनने के बाद उदयपुर में लंबे समय कांग्रेस आस लगाए बैठी है।
उदयपुर ग्रामीण में भाजपा विधायक फूलसिंह मीणा का मुकाबल गत प्रत्याशी रहे विवेक कटारा से हैं। यहां फूलसिंह मीणा हैट्रिक लगाते हैं या नहीं, इस पर लोगों की निगाह है।
जिले की हॉट सीट वल्लभनगर एकलौती ऐसी सीट रही, जहां गत दो चुनाव से भाजपा प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाई। यहां कांग्रेस की मौजूदा विधायक प्रीति शक्तावत, जनता सेना से दीपेंद्र कुंवर भीण्डर और आरएलपी से भाजपा में लौटे उदयलाल डांगी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है।
इधर, मावली विधानसभा में भी पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला है। जहां मौजूदा विधायक धर्मनारायण जोशी के चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद भाजपा ने कृष्ण गोपाल पालीवाल को मैदान में उतारा। जिसके खिलाफ कांग्रेस के पुष्कर लाल डांगी तथा भाजपा से बागी होकर आरएलपी के टिकट से चुनाव लड़ रहे कुलदीप सिंह भी दौड़ में बने हुए हैं।
आदिवासी सीटों में झाड़ोल से कांग्रेस के हीरालाल दरांगी और भाजपा के बाबूलाल खराड़ी के बीच, गोगुंदा में भाजपा के प्रताप भील और कांग्रेस के डॉ. मांगीलाल गरासिया के बीच, सलूंबर में कांग्रेस के रघुवीरसिंह मीणा और भाजपा के अमृतलाल मीणा और खेरवाड़ा में भाजपा के नानालाल अहारी और कांग्रेस के दयाराम परमार के बीच सीधा मुकाबला है। इन सीटों पर आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी भी मैदान में हैं, लेकिन राजनीति से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि उनमें जीत की बजाय परिणाम बदलने की क्षमता अधिक है। वह किस पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाएंगे यह तीन दिसम्बर को मतगणना के दिन ही पता लग पाएगा।
राजसमंद जिले में विधानसभा जोशी और दीप्ति माहेश्वरी की कठिन परीक्षा
राजसमंद जिले की सबसे अहम सीट नाथद्वारा मेें विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी का मुकाबला मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ से है। जबकि राजसमंद में भाजपा की मौजूदा विधायक दीप्ति माहेश्वरी का मुकाबला कांग्रेस से नारायण सिंह भाटी से हैं। इन दोनों सीटों पर मौजूदा विधायकों को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। नाथद्वारा में महाराणा प्रताप के वंशज को भरोसा है राजपूत मतदाताओं पर तो विधानसभा अध्यक्ष जोशी को अपने पांच दशक के राजनीतिक अनुभव पर। इधर, राजसमंद में पहली बार बाहरी का विरोध के चलते दीप्ति माहेश्वरी भी कठिन दौर में गुजर रही हैं। जिनका मुकाबला स्थानीय कांग्रेस प्रत्याशी से है। यहां भाजपा के बागी दिनेश बड़ाला दीप्ति के लिए मुसीबत बने हैं। जबकि राजसमंद जिले की बाकी सीटों में शुमार कुंभलगढ़ में भाजपा के सुरेन्द्रसिंह राठौड़ और कांग्रेस के नये चेहरे योगेन्द्र सिंह परमार, भीम में भाजपा के हरीसिंह रावत और कांग्रेस विधायक सुदर्शन सिंह रावत के बीच सीधी टक्कर है। टक्कर है। राजसमंद सीट पर भाजपा से पूर्व मंत्री स्व. किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी जो सीटिंग एमएलए होकर मैदान में हैं तो कांग्रेस से नारायणसिंह भाटी सामने हैं।
डूंगरपुर जिले में आदिवासी पार्टी पहुंचा सकती है दोनों बड़ी पार्टियों को नुकसान
डूंगरपुर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में से दो पर बीटीपी और वं एक-एक सीट पर कांग्रेस-भाजपा का कब्जा है। डूंगरपुर से मौजूदा विधायक कांग्रेस प्रत्याशी गणेश घोघरा व भाजपा के बंशीलाल के अलावा कांग्रेस के बागी देवरात रोत भी चुनाव मैदान में हैं। वह कांग्रेस विधायक घोघरा की मुश्किल बने हुए हैं। जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर इस बार बहुकोणिय मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां भाजपा से पूर्व राज्यमंत्री सुशील कटारा, कांग्रेस से पूर्व सांसद और पूर्व जिला प्रमुख ताराचंद भगोरा के अलावा भारत आदिवासी पार्टी से चुनाव लड़ रहे मौजूदा विधायक राजकुमार रोत के अलावा बीटीपी भी चुनाव मैदान में है।
आसपुर विधानसभा में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। जहां भाजपा से 2 बार के विधायक गोपीचंद मीणा का मुकाबला कांग्रेस के नए चेहरे के रूप में उतरे कहारी सरपंच राकेश रोत और भारत आदिवासी पार्टी के उमेश डामोर से है।
डूंगरपुर जिले की सागवाड़ा विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा, कांग्रेस के अलावा बीएपी और बीटीपी के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है। भाजपा ने यहां पूर्व प्रधान शंकर डेचा को दूसरी बार प्रत्याशी बनाया है। जिनका मुकाबला कांग्रेस के युवा चेहरे कैलाश रोत, निर्दलीय पन्नालाल डोडियार, बीटीपी के मोहनलाल डोडियार तथा बीएपी के मोहनलाल रोत के बीच है।
बांसवाड़ा में मंत्री मालवीय और बामणिया की साख दांव पर
हाल ही संभाग बनाए गए बांसवाड़ा जिले की पांच विधानसभा सीटों में बांसवाड़ा के अलावा बागीदौरा, गढ़ी, घाटोल और कुशलगढ़ शामिल है। यहां बांसवाड़ा से कांग्रेस के मंत्री अर्जुनसिंह बामणिया तथा बागीदौरा से मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया की साख दांव पर लगी है। बांसवाड़ा में कांग्रेस के बामणिया का मुकाबला भाजपा के पूर्व मंत्री धनसिंह रावत से है। यहां बामणिया के लिए उनका समर्थक रहे भारतीय ट्राइबल पार्टी पार्टी से चुनाव लड़ रहे भगवती डिंडोर से भी है। जबकि बागीदौरा में मंत्री महेन्द्रजीतसिंह मालवीया की स्थिति आसान बताई जा रही है। जहां भाजपा की कृष्णा कटारा से उनका मुकाबला है। यहां आदिवासी पार्टी से भी प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे लेकिन मुख्य मुकाबला दोनों के बीच बताया जा रहा है। बांसवाड़ा जिले की गढ़ी सीट पर कांग्रेस के शंकरलाल चरपोटा और भाजपा के कैलाशचंद मीणा, जबकि कुशलगढ़ में कांग्रेस की रमिला खडिय़ा की भाजपा के भीमाभाई के बीच टक्कर है। रमिला पहले निर्दलीय जीती और इस बार उनको कांग्रेस ने टिकट दिया है। जबकि घाटोल में कांग्रेस के नानालाल निनामा की भाजपा के मानशंकर निनामा से टक्कर है।
चित्तौड़गढ़ में आक्या बिगाड़ सकते हैं भाजपा का खेल
उदयपुर संभाग में चित्तौड़गढ़ विधानसभा के परिणाम पर सबकी नजर रहेगी। जहां भाजपा ने मौजूदा विधायक चंद्रभान सिंह आक्या की जगह नरपत सिंह राजवी, जो पूर्व मंत्री भी रह चुके तथा स्व: भैरोंसिंह शेखावत के दामाद हैं, का मुकाबला कांग्रेस के सुरेंद्र सिह जाड़ावत तथा निर्दलीय चुनाव लड़ रहे आक्या से है। आक्या को बिठाने की भरपूर कोशिश राष्ट्रीय स्तर के नेता भी कर चुके लेकिन वह यहां भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं। जबकि जिले की कपासन सीट पर भाजपा के अर्जुन जीनगर और कांग्रेस के शंकर बैरवा को कांग्रेस के बागी आनंदीराम आरएलपी से चुनाव लड़कर चुनौती दे रहे हैं। निम्बाहेड़ा सीट पर कांग्रेस के मंत्री उदयलाल आंजना और भाजपा से पूर्व मंत्री श्रीचंद कृपलानी के बीच टक्कर है। इधर, बेगूं विधानसभा से कांग्रेस से राजेन्द्रसिंह बिधुड़ी और भाजपा के डॉ. सुरेश धाकड़ के बीच सीधा मुकाबला है। जबकि बड़ीसादड़ी में भाजपा से पूर्व विधायक गौतम दक और कांग्रेस से डेयरी चेयरमैन बद्रीलाल जाट के बीच सीधी टक्कर है।
प्रतापगढ़ में कांग्रेस बचा पाएगी अपनी साख
प्रतापगढ़ जिले में दो ही विधानसभा सीट हैं। यहां प्रतापगढ़ और धरियावद दोनों पर कांग्रेस के विधायक हैं। किन्तु इस बार प्रतापगढ़ से कांग्रेस विधायक रामलाल मीणा के लिए भाजपा के दिग्गज नेता रहे नंदलाल मीणा के बेटे हेमंत मीणा चुनौती बने हुए हैं। जबकि धरियावद सीट पर भाजपा ने दिवंगत विधायक गौतम मीणा के बेटे कन्हैयालाल मीणा को उतारा है, जिसका मुकाबला कांग्रेस के विधायक नगराज मीणा से हैं। इन दोनों पार्टियों को बीटीपी और बीएपी प्रत्याशी भी प्रभावित कर सकते हैं।
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