तकनीक के साथ परम्परागत ज्ञान को भी अपनाना होगा – प्रो. सारंगदेवोत

उदयपुर 28 जनवरी / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक डिपार्टमेंट ऑफकम्प्यूटर साईंस एण्ड आईटी विभाग की ओर से ‘‘ वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटलीजेंसी की भूमिका ’’ विषय पर  आयेाजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार के मुख्य  अतिथि मैग्सेसे पुरस्कार विजेता एवं वाटर मैन ऑफ इंडिया डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा कि शिक्षा को विद्या में बदलने की जरूरत है। टेक्नोलॉजी को समझने से पहले शिक्षा व विद्या में अंतर जानना होगा।  शिक्षा हमें किताबों, कम्प्यूटर, गुगल से मिलती है, विद्या जब आती है जब उसे हमारे अंदर ग्रहण करने का अहसास होता है, जब अहसास होता है तो हमारी जिज्ञासा बढती है। उन्होने कहा कि  जब देश में कम्प्यूटर आया तो आम जन ने उसका विरोध किया था और कहा कि इससे बेरोजगारी बढेगी। लेकिन समय के साथ लोगो केा समझ में आ गया कि कम्प्यूटर एक नयी सोच का भी इजात करता है। कम्प्यूटर मनुष्य के दिमाक को भी समझने लगा है। 21वीं सदी में कम्प्यूटर की टेक्नोजॉली को ओर तेज करना होगा। टेक्नोलॉजी के द्वारा जब हम यह समझ जायेेगे कि हमारे क्या सही है और क्या खराब , तब यह तकनीक हमारे काम की होगी। उन्होने कहा कि यह मशीन है जब यह हमारे सिर पर बैठ जायेगी तब हम इसके गुलाम हो जायेगे। जब हम टेक्नोलॉजी को अपनी समझ से अपने लिए उपयोग करने लगते है और दूसरो का भी बराबर ख्याल रखते है और टेक्नोलॉजी हिंसक न हो , तब यह तकनीक सनातन होती है। इससे किसी को नुकसान नहीं होता।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि हमें नवीन तकनीक को अपनाना है, लेकिन हमारी जो भारतीय संस्कृति, परम्परा, संस्कार है उसे ध्यान में रखते हुए बढेगे तो आप भी खुश रहेगे, आपका परिवार भी खुश रहेगा। आज युवा अच्छे पैकेज के कारण अपने परिवार से दूर होते जा रहे है जिसके कई दुष्परिणाम आज देखने को मिल रहे है।  विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के साथ रिसर्च को बढावा देना होगा,जिससे नयी तकनीक का इजाज किया जा सके। आज पुरी दुनिया डिजिटल होती जा रही है। आंकडो के अनुसार 2007 में 4 प्रतिशत लोग इंटरनेट का उपयोग करते थे जो आज 50 प्रतिशत के करीब आ गई है व 2025 तक इसकी संख्यॉ एक बिलियन हो जायेगी। उन्होने कहा कि आज हम कितना भी तकनीक का उपयोग कर ले , लेकिन मानव का स्वरूप नहीं ले सकती। आज हमारा देश विश्व के प्रगतिशील देशों की लाईन में खडा हुआ है। भारत को विकसित देश बनाना है तो टेक्नोलॉजी का उपयोग जरूरी हैं। शिक्षा, चिकित्सा, कृषि या कोई अन्य क्षेत्र हो , हर जगह टेक्नोलॉजी का उपयोग हो रहा है। तकनीक के दौर में व्यक्ति अपने वास्तविक ज्ञान को भुलता जा रहा है तो चिंता का विषय है।  युवाअेां का आव्हान किया कि हमंे आधुनिक तकनीक के साथ परम्परागत ज्ञान को भी अपनाये।
सेमीनार में स्वीडन से आये प्रो. आशुतोष तिवारी, सौराष्ट्र विवि गांधी नगर गुजरात के पूर्व प्रो. एनएन जॉनी, इसरो के पूर्व वैज्ञानिक प्रो. मधूकर पटेल ने कहा कि आने वाले समय में हर कार्य में आर्टिफिशियल इंटलीजेंसी का महत्वपूर्ण योगदान होगा लेकिन इससे बहुत सारे खतरे भी उत्पन्न होने का खतरा मंडरा रहा है इससे भी आने वाली पीढी को बचाना होगा। इस दिशा में नैतिक रूप से उन्नति करने की जरूरत है। हम अपने शोध एवं ज्ञान का उपयोग स्थानीय समाधान व देश की सेवा के लिए करे। आर्टिफिशियल इंटलीजेंसी के माध्यम से हम मानव सभ्यता के भविष्य की दिशा में सार्थक योगदान देने के साथ साथ कोशिश करे कि नवाचार का पूरा लाभ आमजन को मिल सके।

सेमीनार को कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर,  सुहानी पटेल ने भी विभिन्न तकनीकी सत्रों में अपने विचार व्यक्त करते हुए रिसर्च की ओर ध्यान देने की बात कही।
प्रारंभ में निदेशक प्रो. मंजू मांडोत ने  अतिथियों का स्वागत करते हुए दो दिवसीय सेमीनार की जानकारी दी।
संचालन डॉ. प्रियंका सोनी ने किया जबकि आभार डॉ. मनीष श्रीमाली ने दिया। सेमीनार में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर डॉ. भारत सिंह देवडा, डॉ. तरूण श्रीमाली, डॉ. दिलीप  चौधरी, डॉ. गौरव गर्ग, डॉ. प्रदीप सिंह शक्तावत, डॉ. भरत सुखवाल सहित विद्यार्थी एवं पीएचडी स्कोलर्स ने भाग लिया।

By Udaipurviews

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