मालवा के आर्थिक विकास का आधार थीं अहिल्या बाई’

अहिल्याबाई होळकर के 300वें जन्म शती वर्ष के आयोजनों के तहत चर्चा
भारतीय इतिहास संकलन समिति उदयपुर का आयोजन

उदयपुर, 20 नवम्बर। मालवा के आर्थिक विकास के लिए अहिल्या बाई ने महिलाओं को सक्षम करने में महती भूमिका निभाई, साथ ही मालवा में हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के साथ ही वनांचल में निवास कर रहे लोगों को क्षेत्र से बाहर निकल कर कार्य करने की प्रेरणा दी। राजमाता अहिल्या बाई ने पूरे भारत में तीर्थ विकास का भी कार्य किया।

यह बातें औरंगजेब द्वारा नष्ट किए गए तीर्थ मंदिरों की उद्धारकर्ता होलकर राजवंश की महारानी राजमाता अहिल्याबाई होळकर के 300वें जन्म शती वर्ष के तहत भारतीय इतिहास संकलन समिति, उदयपुर जिला इकाई की ओर से आयोजित चर्चा सत्र में सामने आई।

जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के साहित्य संस्थान परिसर में आयोजित चर्चा सत्र को आरम्भ करते हुए साहित्य संस्थान निदेशक डाॅ. जीवनसिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत किया।

चर्चा सत्र के मुख्य वक्ता भारतीय इतिहास संकलन समिति, चित्तौड़ प्रांत के संगठन सचिव रमेश शुक्ला ने अहिल्या बाई के जीवन वृत्त पर महत्वपूर्ण जानकारियां दी। उन्होंने कहा कि 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के वर्तमान अहमदनगर जिले के चौंडी गांव में जन्मी अहिल्या बाई का कम आयु में ही मराठा सुबेदार मल्हार राव होल्कर के पुत्र खाण्डेराव से विवाह हुआ। वह प्रतिहार गोत्रीय क्षत्रिय थीं। अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-काशी विश्वनाथ में शिवलिंग को स्थापित किया, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्नक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठवाईं, मन्दिरों में शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन के उदृेश्य से विद्वानों की नियुक्ति की।

चर्चा सत्र में अहिल्याबाई के आर्थिक विकास के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए इतिहास संकलन समिति के प्रांतीय महामंत्री डाॅ. विवेक भटनागर ने कहा कि अहिल्या बाई अपनी राजधानी इन्दौर से नर्मदा के किनारे माहेश्वर ले गई और वहां अति सुन्दर शिल्प निर्माण करवा कर उन्होंने शहर का नया स्वरूप दिया। इसके साथ ही उन्होंने चंदेरी के रेशम हथकरघा को बहुत बढ़ावा दिया। इसी का परिणाम था कि हथकरघा की पुरानी विधा से 50 ग्राम रेशम से अत्यन्त झीनी साड़ियों का निर्माण पुनः आरम्भ हुआ। इन्हें पंचतोलिया कहा जाता जाता था। उस जमाने की बनी एक पंचतोलिया साड़ी आज भी बर्मिंघम संग्रहालय लंदन की शान बढ़ा रही है। यह साड़ी एक माचिस की डिब्बी में रखी जा सकती है और अंगूठी से सहजता से निकल जाती है।

सत्र के अध्यक्ष इतिहास संकलन समिति के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने कहा कि मुगलों को इतिहास में आवश्यकता से अधिक स्थान देने के कारण अहिल्याबाई जैसे ऐतिहासिक चरित्र गौण हो गए, जबकि इनका कार्य मुगलों से अधिक महत्वपूर्ण था।

सत्र के अंत में भारतीय इतिहास संकलन समिति, उदयपुर जिला के महामंत्री चैनशंकर दशोरा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डाॅ. मनीष श्रीमाली, डाॅ. कुलशेखर व्यास, डाॅ. नारायण पालीवाल, डाॅ. महामाया प्रसाद चौबीसा, दीपक शर्मा और विद्यार्थी उपस्थित थे।

By Udaipurviews

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