पर्यटन के बाजार में पर्यावरण, इतिहास और शहर हो रहे हैं नीलाम, प्रकृति का विनाश हुआ तो कुछ नहीं बचेगा : विधायक

नाथद्वारा, कुंभलगढ़, उदयपुर और माउंट आबू में पर्यटन विस्तार के नाम पर खत्म हो रहे जंगल :विधायक
विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने विधानसभा में उठाया होटल और रिसॉर्ट के नाम पर जंगलों की कटाई का मुद्दा
नाथद्वारा। माननीय नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने राजस्थान विधानसभा में पर्यटन को विस्तार देने के नाम पर जंगलों की अंधाधुन कटाई पर विधानसभा में गंभीर मुद्दा उठाया है।
उन्होंने कहा है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर प्रकृति का विनाश किया जा रहा है। पर्यटन के बाजार में पर्यावरण, इतिहास और शहर नीलाम हो रहे हैं। सिद्धांतों को ताक पर रख कर उदयपुर, नाथद्वारा, कुंभलगढ़ आदि क्षेत्र में जंगलों की कटाई होकर होटल और रिजॉर्ट बनाए जा रहे हैं।
मगरे, जंगल, पर्यावरण और वनीकरण के सिद्धांतों को ताक पर रख कर किया जा रहा विकास कहां तक स्वीकार्य है। विश्व में सिर्फ 31 वेटलैंड शहर हैं जिनमें एक उदयपुर भी है, लेकिन यहां भी वेटलैंड से जुड़े नियमों का पालन होता दिखाई नहीं देता।
एक महत्वपूर्ण प्रकरण का जिक्र करते हुए विधायक मेवाड़ ने कहा कि वर्ष 1970 में उदयपुर कलक्टर के आदेश से 50 बीघा भूमि चारगाह से बिलानाम दर्ज करने की स्वीकृति दी गई। आदेश से यह भूमि नाथद्वारा नगरपालिका को सुपुर्द कर दी गई। 1973 में 765 बीघा 16 बिस्वा चारागाह भूमि को वन विभाग को हस्तांतरण कर दी। यह नामांतरण तहसीलदार द्वारा दस साल बाद 1983 को ही किया गया और उल्लेखनीय है कि इस नामांतरण में नगरपालिका को आबादी विस्तार हेतु वर्णित 50 बीघा भूमि भी शामिल की गई। वन भूमि में से 1993 को 286 बीघा और 18 बिस्वा को अनाधिकृत क़ब्ज़ा माना गया और न्यायालय वन बंदोबस्त अधिकारी उदयपुर के 2006 निर्णय में इस 286 बीघा 18 बिस्वा को भी वन क्षेत्र में गिना गया। राजस्व मंडल न्यायालय ने 22 अगस्त 2019 को निर्णय दिया कि भूमि आबादी विस्तार की या वन क्षेत्र की भूमि है, इसका प्रकरण राजस्थान सरकार के दो विभागों के मध्य का है एवं प्रकरण को नियमानुसार निस्तारण के लिए मुख्य सचिव राजस्थान सरकार जयपुर को भिजवाया जाए।

इन सभी गतिविधिर्यो का परिणाम यह हुआ कि अतिक्रमण तो है ही लेकिन जिस जगह के लिए निवासियों को नगरपालिका ने पट्टे जारी किए, वे वन क्षेत्र में गिने जा रहे है। प्रशासन के कार्य और शासन की अनदेखी के कारण इन प्रभावित लोगों को नुक़सान पहुँचा है। दोहरी नीति भी यहाँ स्पष्ट है, बिना कोई ठोस कारण के सरकारी इ‌मारत ग्रीन बेल्ट में बन सकती है, होटल भी फारेस्ट, ग्रीन बेल्ट, तालाबों किनारे बन सकते हैं, लेकिन पट्टा शुदा निवासियों को 55 साल भी न्याय के लिया काफी नहीं हैं।

2019 से 2023 तक शासन के द्वारा अनदेखी का कारण, अन्दाज क्या लगाएं, हम सब जानते हैं कि उस समय सरकार किसकी थी, मगर सरकार से आग्रह है कि शासन की संवेदशीलता से प्रशासन से, प्रशासन के कार्य को सुधारें ताकि लोगों को अपना हक मिल सके 1970 से 2025, यह कोई कम समय नहीं है।

विधानसभा में संबोधित करते हुए श्री मेवाड़ ने कहा कि 1961 में राजस्थान का वन क्षेत्र 39,420 वर्ग किमी था जो कि 2019 – 20 में 32,845.3 वर्ग किमी रह गया। जिस तरह से वन क्षेत्र लगातार घट रहे हैं यह वन विभाग की कार्यशैली बताता है लेकिन वन क्षेत्र घटना केवल वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं है सभी विभागों की जिम्मेदारी है जिनके माध्यम से अलग-अलग कार्य होते हैं।

उन्होंने आगे पर्यावरण पर चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया भर में पर्यावरण के लिए नीतियां हैं जो दुनियाभर मानती है खास तौर से यह कि हमको पर्यावरण के प्रति सावधानी रखनी चाहिए जहां नुकसान हो रहा है वहां नुकसान बंद करना चाहिए जो नुकसान कर रहा है उसे भरपाई करनी चाहिए। पर्यावरण किसी एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं सब विभागों को साथ मिलकर पर्यावरण संभालना चाहिए।

वनीकरण भी पर्यावरण का ही भाग है और इसके भी कुछ सिद्धांत है जो दुनिया भर में माने गए हैं।

उन्होंने आगे बताया कि राजस्थान सरकार की जो बजट है यह पहला ग्रीन बजट है और ग्रीन बजट का उद्देश्य ही पर्यावरण को संभालना है और जो लोग पर्यावरण के प्रति काम करते हैं उनके लिए भी लाभदायक पहल है। अगर हम यह सब सिद्धांत ध्यान में रखते हुए कम करें तो सफलता क्यों न प्राप्त हो। लेकिन पिछले कुछ दशकों में देखा जाए तो जहां ज्यादा हरियाली है वहां सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है।

उन्होंने पर्यटन उद्योग पर चर्चा करते हुए कहा कि जहां पर्यटन उद्योग से जंगलों को नुकसान पहुंचा है, अगर जंगल ही नहीं बचेंगे तो पर्यटक देखेंगे क्या? उन्होंने बताया कि जिस तरह उदयपुर को झीलों और बगीचों के लिए जाना जाता था वहां आज एक भी तालाब और बगीचा साफ नहीं दिखाई देते हैं। जिस तरह से तालाबों के किनारे होटल,रेस्टोरेंट और मगरे पर सरकारी भवन बना रहे हैं, और जहां हरियाली बची हुई है वहां और होटल बन रही है, उनकी सहूलियत के लिए और रास्ते बना रहे हैं इसे मैं हरियाली तो कहीं रही ही नहीं है।

दुनिया में कई शहर जिन्हें वेटलैंड घोषित किया गया है और हाल ही में उदयपुर को भी वेटलैंड घोषित किया गया, लेकिन वेटलैंड के कानून माने के लिए कोई तैयार ही नहीं है। पर्यटन के बाजार में नीलाम हो गया है। माउंट आबू की दुर्दशा की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कुंभलगढ़ की दशा बताते हुए कहा कि कुंभलगढ़ जो जंगलों से उभरा हुआ है किला था बहुत जल्द से होटल से उभरा हुआ नजर आएगा। हल्दीघाटी जो एक रण क्षेत्र है वहां इमारत बनाई जाएगी तो वहां का वातावरण खराब हो जाएगा जिन्होंने बलिदान दिया उनका निरादर होगा।

नाथद्वारा का आप देखेंगे तो अब हर पहाड़ हर मगरे पर रास्ते बन रहे हैं, मार्ट बन रहे हैं, हम स्कूल में तो पेड़ लगाते हैं बच्चों को सिखाते हैं लेकिन उनको अपनी नजर ऊपर घुमानी है वह देखेंगे मगरों का तो कत्ल हो रहा है। इन सब चीजों पर ध्यान देना चाहिए और अगर आवश्यकता हो तो नीतियों को भी बदलना चाहिए।

By Udaipurviews

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