शहर के दरवाजों के उपेक्षापूर्ण उपयोग, फव्वारा पार्क, सड़कों पर तोड़फोड़ पर रोक के लिए दायर अपील खारिज

-राजेश वर्मा
उदयपुर, 27 फरवरी। अपर जिला न्यायाधीश संख्या-4 जितेन्द्र गोयल ने शहर में मेवाड़ सरकार की व्यवस्था के अनुरुप तत्समय स्थापित दरवाजों व तापमान को नियंत्रित करने के लिए स्थापित फव्वारा पार्क व सड़कों पर की जा रही तोड़फोड़ के मामले में अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील को अस्वीकार कर खारिज कर दी।

प्रकरण के अनुसार अपीलार्थी ज्ञानेंद्र सिंह गहलोत, ओमप्रकाश व सुमित कुमार जाटव ने सिविल न्यायालय शहर उत्तर द्वारा 30 सितम्बर 2023 को पारित आदेश से व्यथित होकर जिला न्यायाधीश उदयपुर के न्यायालय में 16 अगस्त 2024 को राजस्थान राज्य जरिए पुलिस अधीक्षक, जिला कलेक्टर, नगर निगम जरिए आयुक्त व प्रादेशिक परिवहन अधिकारी के खिलाफ अपील की गई। इसमें बताया गया कि उदयपुर की स्थापना के समय शहरी चारदीवारी के भीतर तत्समय मेवाड़ सरकार की व्यवस्था के अनुरुप देहलीगेट, सूरजपोल, चांदपोल, हाथीपोल, उदियापोल, किशनपोल, ब्रह्मपोल दरवाजे स्थापित किए गए जो पुरामहत्व होकर शहर की धरोहर है जो सुरक्षा के दृष्टिकोण से रखे गए थे। शहर में कानून व यातायात व्यवस्था सुचारू संचालित करने के लिए इन दरवाजों में निर्मित कमरे, आहते, चौक आद में पुलिस विभाग की चौकियां बिना वैध पारवधानों के स्थापित की है जिसके लिखित आदेश नहीं है। इनका उपयोग उपेक्षापूर्ण तरीके से बिना रखरखाव व जरुरी प्रबंधन किए किया जा रहा है जिससे यह सम्पत्तियां कमजोर होकर उनके मूलस्वरुप में ह्रास हो रहा है। इसका ध्यान दिलाने पर जिम्मेदार अधिकारियें ने पहली बार सूरजपोल दरवाजे का जीर्णोद्धार कर रंग रोगन करा दिया। नगर निगम द्वारा देहलीगेट के सामने फव्वारा पार्क में तोड़फोड की गई। यातायात आवागम में काम आ रही सड़क को विधिक प्रावधानों के विपरित जाकर बंद कर उस पर अवैध रूप से पार्किंग बनाना चाहते हैं जो मास्टर प्लान में जारी दिशा निर्देशों की अवहेलना में आता है। जबकि किसी भी विभाग एवं निकाय को मास्टर प्लान में वर्णित यथाक्त स्थानों में फेरबदल करने का अधिकार नहीं है। अपील में मूल वाद के निस्तारण तक विपक्षीगणों को पाबंद करने की मांग की गई। दोनों पक्षों का सुनने के बाद अपर जिला न्यायाधीश जितेंद्र गोयल ने सिविल न्यायालय शहर उत्तर द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध प्रस्तुत अपील परिसीमा से बाधित होने से गुणावगुण पर विवेचना किए बिना अस्वीकार कर खारिज कर दी। आदेश में कहा गया कि अपीलार्थियों को नियमानुसार 30 दन में अपील याचिका प्रस्तुत करनी थी किंन्तु यह याचिका सात माह से भी अधिक के गंभीर व अस्पष्ट विलंब से पेश की गई। न्यायालय में पहुंचने में हुई देरी में क्षमा चाहने वाले व्यक्ति को देरी का स्पष्टीकरण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जो कि अपीलार्थी प्रस्तुत कर पाने में असफल रहे।

By Udaipurviews

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