शिल्पग्राम उत्सव : 21 दिसंबर को राज्यपाल करेंगे उद्घाटन

– “रिदम ऑफ इंडिया” और “कलर ऑफ इंडिया” से होगी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत
– महाराष्ट्र के गणपत सखाराम मसगे और राजस्थान के रूप सिंह शेखावत को कोमल कोठारी पुरस्कार
– प्रथम दिवस दोपहर 3.00 बजे से प्रवेश निःशुल्क

उदयपुर। शिल्पग्राम उत्सव की शुरुआत 21 दिसंबर को लोक कलाओं के संयोजनात्मक प्रस्तुति से होगी। राज्यपाल राजस्थान और अध्यक्ष पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के श्री हरिभाऊ किसनराव बागड़े, नगाड़ा बजाकर उत्सव के उद्घाटन की घोषणा करेंगे। उदयपुर सांसद श्री मन्नालाल रावत, चित्तौड़गढ़ सांसद श्री सी. पी. जोशी, राज्यसभा सांसद श्री चुन्नीलाल गरासिया के साथ-साथ उदयपुर शहर विधायक श्री ताराचंद तथा उदयपुर ग्रामीण विधायक फूल सिंह मीणा भी उद्घाटन समारोह की शोभा बढ़ाएंगे ।

इस वर्ष समारोह की थीम “लोक के रंग – लोक के संग” रखी गई है। मुख्यतया लोक कलाओं की प्रस्तुतियों के लिए जाने वाले इस उत्सव में देश भर की उत्कृष्ट लोक कलाओं का प्रदर्शन होगा। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक ने बताया कि उदयपुर का शिल्पग्राम उत्सव संभवतः देश का अकेला ऐसा उत्सव है जहां पर लोक कलाओं के लिए दर्शक इतने उत्साह से जुड़ते हैं।

डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार : इस बार के अवार्ड महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग के रहने वाले कठपुतली और चित्र कथी के कलाकार श्री गणपत सखाराम मसगे और राजस्थान के जयपुर के भवई कलाकार डॉ. रूपसिंह शेखावत को दिया जाएगा। इस पुरस्कार में प्रत्येक को एक रजत पट्टिका के साथ ही 2.51 लाख रुपए की राशि दी जाती है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पहला ऐसा केंद्र है जिसने लोक कला के क्षेत्र में इतनी बड़ी राशि का पुरस्कार देना आरम्भ किया। ये पुरस्कार राजस्थान के प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ डॉ. कोमल कोठारी जी की स्मृति में दिया जाता है।

इस उत्सव में करीब 20 राज्यों (राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, असम, मेघालय, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, मणिपुर, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु) से करीब 800 लोक कलाकार भाग लेंगे। इस दस दिवसीय उत्सव में करीब 65 कला दलों द्वारा देश की विभिन्न हिस्सों की सांस्कृतिक विरासत प्रदर्शित की जाएगी। थड़ों पर बहरूपिया, कच्छी घोड़ी, कच्छी लोक गायन, राठवा, सुंदरी वादन, अल्गोजा वादन, गवरी, मशक वादन, मांगणियार, चकरी, तेरह ताल, कालबेलिया आदि का प्रदर्शन दिनभर किया जाएगा। मेले में बहुरूपी कला का प्रदर्शन भी होगा जिसके लिए बहुरूपिए कलाकारों को भी आमंत्रित किया गया है ।

साथ ही शिल्पग्राम में 12 राशियों के चिन्ह विशेष आकर्षण का केन्द्र रहेंगे। इन राशि चिन्हों को देश के युवा मूर्तिकारों द्वारा पत्थर में विशेष रूप से शिल्पग्राम उत्सव के लिए तराशा गया है। पूर्व में तराशे गए वाद्य यंत्र तो दर्शकों को लुभा ही रहे हैं। इसके अलावा विभिन्न राज्यों के जनजातीय मुखौटे भी प्रदर्शित किए जाएंगे जिन्हें कलाकारों ने शिल्पग्राम में आयोजित कार्यशाला में तैयार किया है ।

गवरी के चरित्रों को साकार करते हुए पुतले भी दर्शकों को लुभाएंगे इनका निर्माण बंगाल से विशेष रूप से बुलाए गए कारीगरों द्वारा किया जा रहा है। संगम हॉल में केन्द्र द्वारा विभिन्न शिविरों में बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी तथा कई अन्य आकर्षण भी जोड़े जाएंगे । शिल्पग्राम के मुख्य द्वार को गुजरात की पारंपरिक पिथोरा चित्रकारी से सजाया गया है।

हिवड़ा री हूक : 22 से 29 दिसंबर तक “हिवड़ा री हूक” कार्यक्रम बंजारा मंच पर दोपहर 12 से 4 बजे तक होगा जिसमें दर्शकों द्वारा प्रस्तुति व प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता होगी। इस कार्यक्रम में मेले में आए दर्शक भी अपनी प्रस्तुति दे सकेंगे। सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी का सही उत्तर देने वाले व्यक्ति को शिल्पग्राम मेमेंटो दिया जाएगा।

प्रथम दिवस दोपहर 3.00 बजे से प्रवेश निःशुल्क होगा

 प्रथम दिवस की प्रस्तुतियां :
रिदम ऑफ इंडिया” और “कलर ऑफ इंडिया : 
“रिदम ऑफ इंडिया” में लगभग 50 वाद्य यंत्रों की एक सिम्फ़नी प्रस्तुत की जाएगी उसके पश्चात 14 राज्यों के लगभग 200 कलाकारों द्वारा एक कोरियोग्राफ्ड नृत्य प्रस्तुत किया जायेगा जिसे “कलर ऑफ़ इंडिया” का नाम दिया गया है और जिसे तैयार कर रहे हैं प्रसिद्ध कोरियोग्राफर सुशील शर्मा।

प्रतिदिन अलग अलग मंचों पर लोक नृत्यों की दिनभर प्रस्तुति रहेगी तथा शाम को 6 बजे से मुख्य मंच पर विशेष कार्यक्रम होंगे। इस बार मुख्य प्रस्तुतियों में भारत के कई राज्यों के लोक नृत्यों को आमंत्रित किया है । 10 दिवस में 65 लोक कला दलों के लगभग 800 कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगे ।

हर दिन कुछ ना कुछ नया : प्रयास ये किया जा रहा है कि दर्शकों का ना केवल मुख्य मंच पर बल्कि अन्य छोटे मंचों पर भी प्रतिदिन कुछ ना कुछ नया मिले । इस हेतु पंडवानी गायन, बाउल प्रस्तुति के साथ ही नगाड़ा वादन की प्रस्तुतियों के साथ ही अंतिम दो दिनों में झंकार के नाम से जाने वाली प्रस्तुति भी होगी। गोवा राज्य की ओर से एक विशेष संयोजनात्मक प्रस्तुति भी आमंत्रित की गई है ।

हास्य प्रस्तुतियां : जीवन में हास्य के महत्व को देखते हुए हास्य का तड़का लगाने के लिए कुछ प्रस्तुतियां हास्य की भी जोड़ी गई हैं ताकि लोक प्रस्तुतियों के साथ ही लोग हास्य की गुदगुदी का भी आनंद ले सकें।

मेले में चार फूड ज़ोन होंगे : दर्शकों को विभिन्न राज्यों के व्यंजन उपलब्ध करवाने के लिए चार फूड ज़ोन बनाए गए हैं जहां लगभग 12 राज्यों के फूड आइटम उपलब्ध होंगे ।

मेले में 400 क्राफ्ट स्टाल्स : शिल्पग्राम उत्सव में 400 के लगभग क्राफ्ट स्टाल्स होंगी जिनमें 24 राज्यों के 800 शिल्पकार और कारीगर अपना उत्पाद विक्रय हेतु लाएंगे। इसमें देशभर से लगभग सभी प्रकार की क्राफ्ट प्रदर्शित किए जाएंगे। इस बार जोधपुर से ऊन बोर्ड, कोलकाता का जुट बोर्ड और ट्राइफेड की ओर से भी स्टाल्स लगाई जाएंगी। इस बार प्रयास किया गया है कि अधिक से अधिक राज्यों के कारीगरों को शामिल किया जाए।

कारीगरी का लाइव प्रदर्शन : इस बार मेले में कारीगरी के प्रदर्शन के लिए ऐसे शिल्पकारीगरों को भी आमंत्रित किया जा रहा है जो मौके पर ही अपनी कारीगरी का प्रदर्शन भी करेंगे । सालावास की दरिया, पट्टू शाल, कोटा डोरियां, कश्मीरी बुनाई, मोलेला की मिट्टी शिल्प, लाख की चूड़ियां बनाने की प्रक्रिया को मौके पर प्रदर्शन की व्यवस्था की जा रही है ।

डॉक्यूमेंट्री का स्क्रीन पर प्रदर्शन : इस बार मेले में कुछ स्थानों पर स्क्रीन लगाकर पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा लोक कला और शिल्प पर बनवाई गई डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया जाएगा । इसका उद्देश्य हमारी समृद्ध विरासत के प्रति संरक्षण हेतु जागरूकता पैदा करना है।

मेले के एंबिएंस : मेले के एंबिएंस को लोक और जनजातीय थीम पर सजाया जा रहा है । मुख्य मंच का बैकड्रॉप और मंच के गेट राजस्थानी थीम पर बंगाल के कारीगर बना रहे हैं।

मेले में आमंत्रित कला दल : रौफ (जम्मू कश्मीर), बीहू (असम), देड़िया (उत्तर प्रदेश), नटुवा (उत्तर प्रदेश), थांगटा व स्टिक (मेघालय), लावणी (महाराष्ट्र), लाई हारोबा (मणिपुर), चरी (राजस्थान), रायबेंसे (पश्चिमी बंगाल), पूजा कुनीता (कर्नाटक), भपंग (राजस्थान), भवई (राजस्थान), तलवार रास (गुजरात), राठवा (गुजरात), पुरूलिया छाऊ (पश्चिमी बंगाल), छपेली (उत्तराखण्ड), सौंगी मुखवटे (महाराष्ट्र), संभलपुरी (ओडिशा), लुड्डी (पंजाब), भांगड़ा (पंजाब), सिद्धि धमाल (गुजरात), मांगणियार गायन (राजस्थान), घूमर (हरियाणा), देखणी (गोवा), घोड़े मोढ़नी (गोवा), कालबेलिया (राजस्थान), स्किट, पण्डवाणी गायन (छत्तीसगढ़), नगाड़ा वादन, मेवात़ी गैर (राजस्थान), बाऊल संगीत (पश्चिमी बंगाल), कच्छी घोड़ी (राजस्थान), अल्गोजा वादन (राजस्थान), गवरी (राजस्थान), कच्छी लोक गायन (गुजरात), तेरह ताली (राजस्थान), सुंदरी वादन (महाराष्ट्र), मशक वादन (राजस्थान), लाल आंगी गैर (राजस्थान), कथक, सहरिया स्वांग (राजस्थान), सिरमोरी नाटी (हिमाचल प्रदेश), देड़िया (राजस्थान), गोटिपुआ (ओडीशा), पुंग ढोल चोलम (मणिपुर), मल्ल खंभ (महाराष्ट्र), कावड़ी कड़गम (तमिलनाडु), संभलपुरी (ओडीशा), मयूर नृत्य (राजस्थान), डांग (गुजरात) आदि कलादल शामिल है ।

डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार 

 डॉ. रूप सिंह शेखावत (भवाई लोक नृत्य) : डॉ. रूप सिंह शेखावत जयपुर के रहने वाले है जिन्होंने राजस्थानी लोक नृत्य भवाई को विश्व पटल पर लाने का कार्य किया। साथ ही चरी, घूमर, तेरहताली के भी विख्यात कलाकार है। कलाक्षेत्र में उनको 50 वर्षों से अधिक का अनुभव प्राप्त है। गुरू शिष्य परंपरा के तहत ‘भवाई लोक कला संस्थान, जयपुर’ द्वारा छात्र-छात्राओं को भवाई नृत्य की शिक्षा प्रदान की जा रही है। इनके द्वारा ताईवान में 1000 बालिकाओं को घूमर नृत्य की शिक्षा भी प्रदान की गई है। उदयपुर में रहकर उन्होंने भवाई कला को पारंपरिक तरीके से सीखा। जापान, दुबई, टोक्यो, साउथ अफ्रीका, जेनेवा, सिंगापुर, चीन, होंगकोंग सहित लगभग 40 से ज्यादा देशों में अपनी प्रस्तुतियां दे चुके है। इन्हें राजस्थानी संगीत नाटक अकादमी, महाराजा ईश्वर सिंह अवार्ड, गौरव अवार्ड, लोक सम्राट अवार्ड, संगीत राज अवार्ड, विसारद अवार्ड, जय प्रकाश माथुर अवार्ड आदि से नवाजा गया है।

श्री गणपत सखाराम मसगे (कठपुतली एवं चित्रकली) : श्री गणपत सखाराम मसगे सिंधुदुर्ग महाराष्ट्र के रहने वाले है। उन्होंने बचपन से ही पिताजी के साथ कठपुतली एवं चित्रकथी जैसी कला को सीखा तथा इसमें अपना भविष्य तलाशा। महाराष्ट्र की इस लुप्त होने वाले कला को पूरे भारत वर्ष में पहुंचाया। इस कला के पुरातन अवशेषों को संभालते हुए इन्होंने पुरातन अवशेषों का छोटासा म्यूजियम भी बनाया है। चमड़े की पुतूल एक आदिम कला है। यह कला उस समय से अस्तित्व में आई जब मनुष्य जंगल में रहते थे और जानवरों का शिकार करते थे। इस तरह की कला के लिए शिकार किए गए जानवरों की खाल का उपयोग किया जाता था। भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाली आदिवासी जनजातियों ने इस कला को संरक्षित किया है। यह कला जो महाराष्ट्र में कहीं और नहीं पाई जाती है और भारत में भी दुर्लभ होती जा रही है। कठपुतली कला (चमड़े की पुतूल) को बढ़ावा देने हेतु लगभग 75 से अधिक शिष्य बनाए है, जो इस कला के मूल रूप को ना बदलते हुए पपेट के नए-नए कार्यक्रम बनाए जो समाज प्रबोधन के हित में थे। चित्रकथी के पेंटिंग को नया रूप देकर उसके साथ अलग-अलग प्रोडक्ट बनाए जिसकी डिमाण्ड बहुत ज्यादा है। इन कठपुतली एवं चित्रकथी कलाओं के करीब 3000 से अधिक शो कर चुके है। ठाकरवाडी, पिंगुळीच्या अंगणात, महेश केल्सुकर लोकगंगा सहित कई किताबों में लेख छपे है। भारत सरकार से राष्ट्रपति पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी, कलवंत पुरस्कार, अखिल भारतीय मराठी नाट्य सम्मेलन का विशेष पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ पुलिस पाटिल पुरस्कार, चैत्र चाहूल का ध्यास पुरस्कार, पारंपरिक कठपुतली पुरस्कार, कला सम्मान पुरस्कार, आदिवासी गिरीजन पुरस्कार, भरतमुनि पुरस्कार सहित कई अवार्डों से नवाजा गया है।

By Udaipurviews

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