उदयपुर, 29 सितम्बर। नवरत्न कॉम्पलेक्स में चातुर्मास कर रहे पंन्यास प्रवर निरागरत्न विजय जी म.सा. ने रविवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अनंत काल से दुःख अज्ञानता की वजह से आता है। अज्ञान के दो प्रकार है- बोध अभाव और मिथ्या बोध। जिसके पास बोध नहीं है वो दुर्गति में नरक में कभी नहीं जाता पर जिसके पास बोध का अभाव है वो निश्चित तौर से दुर्गति में जाएगा। अज्ञान दूर करने के लिए मन की स्थिरता चाहिए। लट्टू अस्थिर है घूमता रहता है फिर भी नुकसान नहीं क्योंकि केन्द्र को अत्याग है। उसी तरह धर्मी का मन चंचल हो तो भी कुछ नुकसान नहीं अगर उसमें धर्म रूपी केन्द्र का अत्याग जरूरी है। भटकता मन नुकसानप्रद नहीं बल्कि गलत जगह भटकता मन नुकसानप्रद है। मन की चंचलता अभिशाप नहीं आशीर्वाद है। मन की स्थिरता के लिए मन की चंचलता का लाभ उठाना है। पाप नाश के लिए भूतकाल में जाकर निंदा-गर्हा करो, पाप अबंध-पुण्यबंध के लिए भविष्य में जाकर कल्पना करेा। मन को स्थिर करने का प्रयास बंध करके मन को गलत में से डायवर्ट करने का प्रयास करो।
दुःख अज्ञानता की वजह से आता है : निरागरत्न
