उदयपुर, 24 सितम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में मंगलवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि भूख तीन प्रकार की होती है-पेट की भूख, मन की भूख व आत्मा की भूख। पेट की भूख आहार से, मन की भूख शब्दों के भोग, इन्द्रियादि के भोग से एवं आत्मा की भूख भक्ति से मिटती है। ज्ञानीजन कहते हैं कि आत्मा की भूख को शान्त करना है तो भक्ति को जगा लो। इसके जगते ही पुद्गलों का राग-रंग, छाया-माया छूटने लगती है। जीव पर पुद्गलों की छाया-माया इतनी जबर्दस्त है कि वह स्व-पर का चिन्तन नहीं कर पाता। हमारे जीवन का दूषण अज्ञान है और मन का दूषण प्रमाद है। इन दोनों दूषणों से मुक्ति तभी मिलेगी जब आत्मा में भक्ति जगेगी। भक्ति हमारी पसन्दगी बने तो ही जीवन परिवर्तित हो सकता है। जीवन में परिवर्तन पसंदगी से ही आता है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि अग्नि के दो रूप हैं-ज्वाला व ज्योति। ज्वाला बनोगे तो आप अपना इतिहास काला बना दोगे क्योंकि ज्वाला अर्थात क्रोध जलाने का ही काम करता है। ज्योति बनोगे तो खुद का जीवन भी उजला बना दोगे व दूसरों के जीवन में भी उजाला भर दोगे। सामने वाले की गलती की सजा स्वयं को देना क्रोध है। ऐसा करने पर व्यक्ति अपनों की नजरों में गिर जाता है। संतान की नजर में गिरना बहुत बड़ी दुःखद घटना है, इससे बचें। श्री यशभद्र जी म.सा. ने कहा कि ध्यान आत्म भाव में स्थित होने में सहायक होता है। बैंगलोर से पधारे शान्तिलाल लुणावत ने भी धर्मसभा में अपने विचार रखे। श्रीसंघ मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि तपस्विनी महासती श्री मनःप्रिया जी म.सा. के तप की आचार्यश्री, उपाध्यायश्री, विशालप्रिय जी म.सा., पद्मश्री जी, मयंकमणि जी, कुमुदश्री जी, चित्राश्री जी, पुष्पशिला जी, कनकश्री जी, मुक्ताश्री जी, सिद्धिश्री जी ने शब्दों से अनुमोदना की। इस अवसर पर होसपेट की कमला जी ने होसपेट चातुर्मास करने हेतु विनती की।
भक्ति हमारी पसन्दगी बने तो ही जीवन परिवर्तित हो सकता है : आचार्य विजयराज
