सरों के दुख को देखकर जो आंसू निकलते हैं, वे मोती कहलातेः संयम ज्योति

उदयपुर। सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट द्वारा आयोजित किये जा रहे चातर्मास में समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि हंसने का अधिकार केवल मनुष्य को ही मिलता है, क्योंकि उबता भी वही है। परंतु विडम्बना ऐसी है कि मनुष्य जन्मता, रोना रोता है, झींकता झींकता जिन्दगी जीता है और रोते-2 ही मरता है।
साधी ने कहा- जब व्यक्ति दूसरों की मूर्खता पर हंसता है तो उसका अहंकार हंसता है और जब मनुष्य स्वयं की मूर्खता पर हंसता है तो उसका अहंकार टूटता है। तीसरे प्रकार की हंसी अस्तित्वगत होती है जब व्यक्ति संसार की असारता और क्षणभंगुरता पर हंसता है तो उसका विकास होता है।
साध्वी ने कहा-आंसुओं की भी अपनी महिमा है। चार प्रकार के आंसू वंदनीय होते है। उपकारी के प्रति, उत्तम के प्रति, अनुकंपा के आंसु, आनंद के आंसु और आक्रंदन पश्चाताप के मानु।
साध्वी ने कहा- स्वयं के दुःख से जो आंसू निकलते हैं, वे पत्थर कहलाते है परंतु दूसरों के दुख को देखकर जो आंसू निकलते हैं, वे मोती कहलाते है। आंसुओं से शबरी का कनेक्शन राम से हुआ, सुदामा का कनेक्शन कृष्ण से हुआ। चंदन बाला की कनेक्शन महावीर से हुआ। हम भी आंसुओं द्वारा अपना कनेक्शन परमात्मा से जोड़ सकते है।

By Udaipurviews

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