उदयपुर। सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट द्वारा आयोजित किये जा रहे चातर्मास में समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि हिन्दुस्तान में महापुरुषों को समय-2 पर शाब्दिक धरातल पर याद किया जाता है। उनका जीवन दर्शन, शिक्षाएं और सिद्धांत प्रेरणा स्त्रोत होते है। केवल महापुरुषो को औपचारिकता के लिए याद कर लेना, जुलूस निकालना, झांकियाँ निकालना, उनकी चर्चा करना कुछ भी अर्थ नहीं रखता। जब तक चर्चा को चर्या में न बदला जाये, जब तक उनके संदेशों को अमली जामा नही पहनाया जाएं।
साध्वी ने कहा कि श्रीकृष्ण जागरुकता और कर्मठता के धनी थे। श्री कृष्ण आज भी जीवन्त है। जन-2 की आस्था के केन्द्र है। यद्यपि उनका जन्म उन विकटतम, जटिलतम और विषमतम परिस्थितियो में हुआ जब अन्याय, अनीति भ्रष्टाचार, कराचार और अत्याचार चरम सीमा पर था। उस समय श्री कृष्ण ने विभाव की जगह स्वभाव की, तोड़फोड़ की जगह संगठन और अराजकता की जगह व्यवस्था की बात की। श्री कृष्ण शांतिदूत बने, सारथी बने और तो और राजसूय यज्ञ में झूठी पत्तलें उठाई, संदेश दिया कि कोई कार्य छोटा-बड़ा नही होता।
साध्वी ने कहा कि श्रीकृष्ण ने सुदामा के प्रति मित्रता की जैसी मिसाल कायम की वह अन्यन्त्र देखने को नही मिलती। उन्होंने सुदामा की मैत्री द्वारा संदेश दिया कि सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र के दुःख दर्द में केवल काम ही नहीं आता अपितु मित्र को समय पर तन मन और धन का पूर्ण सहयोग देकर अपने जैसा बना देता है।