उदयपुर, 22 अगस्त। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय चातुर्मास में हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने गुरूवार को धर्मसभा में कहा कि उत्तराध्ययन सूत्र के 28वें अध्यन की 10वीं एवं 11वीं गाथा में जीव का लक्षण उपयोग बतलाया है। उपयोग का अर्थ वहाँ संवेदन बताया गया है। यह संवेदन तीन प्रकार का होता है, पहला-स्व संवेदन, दूसरा-पर संवेदन एवं तीसरा-सर्व संवेदन। आपका कोई नाम पुकारे तो आपको अपनी प्रतीति हो जाती है। यही स्व संवेदन है। अगर आप दूसरों के दुःख-दर्द को अनुभव कर उसे दूर करने के लिए प्रयत्न करते हैं तो यह पर-संवेदनशीलता है। जो प्राणीमात्र के प्रति दया भाव रखता है वह शुद्ध उपयोग अर्थात् सर्व संवेदन है। जब व्यक्ति अशुभ से शुभ में, शुभ से शुद्ध की ओर प्रवृत्त होता है तो उसमें प्रबुद्धता आ जाती है। प्रबुद्ध व्यक्ति ही शुद्ध संवेदन अर्थात् सर्व संवेदन रख पाता है। सर्व संवेदन का भाव रखने वाला मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि चिंतन दो प्रकार का होता है-आत्मलक्षी चिंतन व देह का चिंतन। आत्मलक्षी चिंतन निश्चय कहलाता है तो देह का चिंतन व्यवहार कहलाता है। देशाचार एक व्यवहार है। जिस देश में जैसा व्यवहार मान्य है, जो रीति-रिवाज, परम्पराएं और आचार संहिता मान्य है, सभी को उसका पालन करना चाहिए। यही लोक व्यवहार एवं देशाचार है। देशाचार का पालक धर्मस्थान के आचार का जो कि पाँच अभिगम हैं, का आदर करें। श्रावक जीवन में चतुर बन कर व्यवहार धर्म को निभाये। श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि दो दिवसीय राष्ट्रीय युवा शिविर का आयोजन आगामी 28 एवं 29 सितम्बर को आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देशभर से युवा संघ के पदाधिकारी, कार्यकर्ता भाग लेंगे। वहीं आज धर्मसभा में इंदौर, मुम्बई, जयपुर के श्रद्धालुजन उपस्थित थे। जैन भूगोल को जानें विषयक तीन दिवसीय महिला शिविर का आगाज गुरूवार से हुआ। प्रतिदिन दोपहर में श्री विनोद मुनि जी म.सा. जैन भूगोल विषय पर श्राविकाओं का ज्ञानवर्धन करेंगे।
सर्व संवेदन का भाव रखने वाला होता है मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर : आचार्य विजयराज
