सोजत का किला मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग है जो जोधपुर से 110 कि.मी. दूर पाली जिले के सोजत कस्बे में सुकड़ी नदी के मुहाने पर अवस्थित है। मारवाड़ और मेवाड़ के मध्य स्थित होने के कारण विगत युद्ध और संघर्षकाल में इसका विशेष सामरिक महत्व था। गोडवाड क्षेत्र पर निगरानी रखने तथा मेवाड़ की ओर से किसी भी संभावित आक्रमण का मुकाबला करने के लिए मारवाड़ (जोधपुर) रियासत की सेना का एक सशक्त दल यहां तैनात रहता था। सोजत एक प्राचीन स्थान है जो तांबावती (त्रंबावती) नगर के नाम से प्रसिद्ध था। मारवाड़ राज्य के इतिहास में उल्लेख है कि तांबावती नगरी के नाम से प्रसिद्ध यह कस्बा उजड़ जाने पर हूल क्षत्रियों ने 1054 ईस्वी में सेजल माता के नाम से पुन: बसाया था, इससे इसका नाम सोजत पड़ा। यहां पर विभिन्न कालों में पंवार, हूल, सोनगरा चौहान, सींधल, सोलंकी, मेवाड़ के सिसोदिया, राठौड़ तथा मुगल बादशाहों के अधिकार में रहा।
सोजत पर हूल क्षत्रियों के बाद जालौर शाखा के सोनगरा चौहानों का आधिपत्य रहा। तत्पश्चात यह सींधलों के अधिकार में आ गया। मंडोर के शासक राव रणमल ने सींधलों को परास्त कर सोजत पर राठौड़ों का अधिकार स्थापित किया। राव रणमल की मृत्यु के पश्चात सोजत पर कुछ अरसे के लिए मेवाड़ के महाराणा कुंभा का आधिपत्य हो गया। किंतु रणमल के पराक्रमी पुत्र जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 1455 ईस्वी में मेवाड़ से सोजत वापस ले लिया। राव जोधा ने अपने जयेष्ठ पुत्र नीम्बा को सोजत में नियुक्त किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार नीम्बा ने नानी सीरडी़ नामक डूंगरी पर 1460 ईस्वी में सोजत के वर्तमान दुर्ग का निर्माण करवाया। जोधपुर राज्य की ख्यात में राव मालदेव को सोजत के किले का निर्माता माना गया है। जैसा सींधल से पशुधन के मामले में उत्पन्न विवाद के कारण हुए संघर्ष में उसे मारने के दौरान लगे घावों से नीम्बा की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात राव गांगा जब जोधपुर की गद्दी पर बैठा, तब जोधपुर के प्रमुख सामंतों ने उसके भाई वीरमदेव को सोजत दिलाया ताकि उनमें पारस्परिक सद्भाव बना रहे।
लेकिन राव गांगा ने वीरमदेव के प्रमुख सहयोगी मुंहता रायमल को मारकर सोजत पर अधिकार कर लिया। तदनन्तर जोधपुर के पराक्रमी शासक राव मालदेव ने सोजत के चारों ओर सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करवाया तथा अन्य विविध उपायों द्वारा इसकी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया। तत्पश्चात सोजत पर जोधपुर के स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय शासक राव चंद्रसेन का अधिकार रहा। तदोपरान्त बादशाह अकबर ने चंद्रसेन से छीनकर राव मालदेव के पुत्र राम को सोजत इनायत किया। उसका बनाया हुआ रामेलाव तालाब आज भी सोजत के किले के पर्वतांचल में विद्यमान है। इसके बाद सोजत मोटा राजा उदयसिंह को जागीर में मिला। 1607 ईस्वी में बादशाह जहांगीर ने इसे राव करमसेन को इनायत किया। तदनन्तर अधिकांशतः सोजत पर राठौड़ों का ही अधिकार रहा।
सोजत का किला एक लघु गिरी दुर्ग है जो भग्न एवं खंडित अवस्था में है। किले के प्रमुख भवनों में जनानी ड्योढ़ी, दरीखाना, तबेला, सूरजपोल तथा चांदपोल प्रवेश द्वार इत्यादि उल्लेखनीय हैं। इसके भीतर अधिकांश भवन कालप्रवाह और मानवीय प्रकोप से धूल धूसरित हो गए हैं। किले की सुदृढ़ बुर्जें तथा विशेषकर उसका सूरजपोल प्रवेश द्वार बहुत सुंदर और आकर्षक लगता है। अतीत में सोजत एक सुदृढ़ परकोटे के भीतर बसा हुआ था। शहरपनाह के साथ प्रवेश द्वारों के नाम जोधपुरी दरवाजा, राज दरवाजा, जैतारण दरवाजा, नागौरी दरवाजा, चावंड पोल, रामपोल तथा जालोरी दरवाजा मिलते हैं। जोधपुर के महाराजा विजय सिंह द्वारा सोजत के पुराने कोट की मरम्मत करवाने तथा एक अन्य पहाड़ी पर नया कोट (नरसिंहगढ़) बनाने का उल्लेख मिलता है। उनकी पासवान गुलाबराय ने एक नया शहर बसाने के इरादे से वहां एक परकोटा भी बनवाया था जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान है।
सोजत का किला मारवाड़ और मेवाड़ के लगभग बीच में होने के कारण इसका सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व था। इसीलिए इसे मारवाड़ का सुरक्षा प्रहरी कहा जाता था। अरावली उपत्यकाओं के नैसर्गिक सौंदर्य के बीच सुकड़ी नदी के किनारे बसा यह किला पर्यटकों का बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है।
-पन्नालाल मेघवाल वरिष्ठ लेखक
एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार।