सरस्वती के मार्ग के अन्वेषक वाकणकर थे पुरातत्व और शिक्षा के लिए समर्पित

इतिहास संकलन समिति ने किया वाकणकर के योगदान को याद
उदयपुर, 06 मई। इतिहास के विरोधाभासों को अपनी पुरातात्विक खोजों से झुठलाने वाले और अंग्रेजों द्वारा इतिहास के साथ किए गए कपट को उजागर करने वाले डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर मेवाड़ की भूमि के लाल थे। अपने समय में भारत के सबसे प्रमुख पुरातत्वविद् एवं इतिहासकार डॉ. वाकणकर का जन्म नीमच में 4 मई 1919 को हुआ था। यह क्षेत्र मेवाड़ का भाग है जो आजादी के बाद राज्य के गठन के दौरान मध्य प्रदेश का भाग बना। वाकणकर ने भोपाल के निकट भीमबेटका के प्राचीन शिलाचित्रों का अन्वेषण किया। पुरातात्विक कालगणना के अनुसार इनका काल 1,75,000 वर्ष पुराना है। इस काल की गणना कार्बन-डेटिंग पद्धति से की गई है।
यह जानकारी वरिष्ठ पुरातत्वविद व भारतीय इतिहास संकलन समिति उदयपुर के अध्यक्ष डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने भारतीय इतिहास संकलन समिति, उदयपुर की ओर से आयोजित संगोष्ठी में दी। वाकणकर की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित इस संगोष्ठी में राजस्थान विद्यापीठ के अंतर्गत आने वाले साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. खरकवाल ने बताया कि डॉ. वाकणकर की खोज से सिद्ध होता है कि भारत में मानव का अस्तित्व 1,75,000 वर्ष से अधिक पुराना है। उस काल में रायसेन जिले में स्थित भीम बैठका गुफाओं में मनुष्य रहता था और वो चित्र बनाता था।
भारतीय इतिहास संकलन समिति चित्तौड़ प्रांत के महामंत्री एवं प्रताप गौरव केन्द्र के शोध केन्द्र प्रभारी डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि वाकणकर जी ने अथक शोध से स्थापित किया कि ‘सरस्वती नदी भारतवर्ष में बहती थी’। इससे पूर्व अंग्रेजों और अन्य कई इतिहासकारों ने सरस्वती को भारत से बाहर की नदी स्थापित करने का प्रयास किया था। उन्होंने ने अपनी पुरातात्विक खोज के माध्यम से सरस्वती नदी के अदृश्य होने का सत्य और उसका मार्ग दोनों ही विश्व के समक्ष उजागर किए।
भारतीय इतिहास संकलन समिति राजस्थान क्षेत्र के संगठन सचिव छगनलाल बोहरा ने बताया कि डॉ. वाकणकर को 1975 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे और पद्मश्री लेने के लिए संघ की काली टोपी लगाकर ही राष्ट्रपति भवन गए थे। वाकणकर जन्म तत्कालीन नीमच छावनी में हुआ था।
इतिहासविद् डॉ. महावीर प्रसाद जैन ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आने पर उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक और शैक्षिक उत्थान का कार्य किया। लगभग 50 वर्षों तक जंगलों में पैदल घूमकर विभिन्न प्रकार के हजारों चित्रित शैल आश्रयों का पता लगाकर उनकी कापी बनाई तथा देश-विदेश में इस विषय पर विस्तार से लिखा, व्याख्यान दिए और प्रदर्शनी लगाई। प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में डॉ. वाकणकर ने अपने बहुविध योगदान से अनेक नये पथ का सूत्रपात किया।
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य डॉ. मनीष श्रीमाली ने बताया कि उन्होंने आर्य-द्रविड़ आक्रमण सिद्धान्त को झुठलाने वाली सच्चाई से सबको अवगत कराया। उन्होंने अपना समस्त जीवन भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने में लगा दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चित्तौड़ प्रांत के संगठन सचिव रमेश शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि वे संस्कार भारती से सम्बद्ध थे, संस्कार भारती के संस्थापक महामंत्री थे। ज्ञात हो कि संस्कार भारती संगठन कला एवं साहित्य को समर्पित अखिल भारतीय संगठन है। इसकी स्थापना चित्रकार बाबा योगेंद्र जी पद्मश्री (2017) ने 1981 में की।
कार्यक्रम का संचालन भारतीय इतिहास संकलन समिति उदयपुर के मंत्री चैनशंकर दशोरा ने किया और धन्यवाद जिला सचिव दीपक शर्मा ने दिया। कार्यक्रम में चित्तौड़ प्रांत प्रचार-प्रसार प्रभारी कौशल मूंदड़ा, डॉ. कुलशेखर व्यास, गौरीशंकर दवे आदि उपस्थित थे।

By Udaipurviews

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