उदयपुर। राष्ट्र संत उपसर्ग विजेता गुरु माँ गणिनि आर्यिका 105श्री सुप्रकाश मति माताजी द्वारा अपने साथ श्रवण बन अपनी से बड़ी बुजर्ग आर्यिका 105 श्री प्रज्ञामति माताजी का अपने दीक्षित काल मे भी इस महा तीर्थ की वंदना का मौका नहीं मिल पाया। ऐसे समय गुरु माँ सुप्रकाशमति माताजी द्वारा श्रवण बन इस यात्रा का बीड़ा उठाया, साथ मे 7 साध्वी वृंद शामिल थी।
सुप्रकाश ज्योति मंच के राष्ट्रीय संयोजक ओमप्रकाश गोदावत ने बताया कि 14 फरवरी 2024 से उदयपुर से रवाना हो कर सोनागीरी,अयोध्या,बनारस होते हुए सम्मेदशिखर तीर्थ पर आज तीर्थ वंदन करते हुए आचार्य शांति सागर धाम में प्रवेश हुआ। इस धाम का निर्माण जैन धर्म की सर्वाेच्च साध्वी गणिनि प्रमुख ज्ञानमति जी द्वारा कुशल प्रशासक स्वामी रविंद्र कीर्ति द्वारा किया गया। यह यात्रा करीब 2 माह बीस दिन मे 2105 किलोमीटर का रास्ता तय कर यहां पहुंची है।
उदयपुर से राष्ट्रीय संयोजक ओमप्रकाश गोदावत,शाखा अध्यक्ष बादामीलाल, मूंगना से करनमल मैदावत, डूंगरपुर से मंजू बाबाबल, वादा से कैलाश बाई, हजारी बाग झारखंड से राजकुमार तोग्या, पप्पू भाई, दिलीप अजमेरा,झुमरी तलेया से आशीष जैन सहित कई श्रावकों ने यहां उपस्थिति दर्ज करा पुण्य का अनुभव किया। इस अवसर पर गुरु माँ ने कहा यह वो तीर्थ जहाँ दूसरे तीर्थंकर अजित नाथ भगवान और उनके बाद यहां से जैन धर्म के 20 तीर्थ कर मोक्ष गए। ऐसी तीर्थ भूमि के आस पास की भूमि पर ही आपके चरण मस्तक पर अगर यह धुल भी स्पर्श हो जाये तो आपके कई पाप कर्म का नाश हो जायगा। इसलिए हर जैन को जीवन मे एक बार इस महान शाश्वत तीर्थ पर एक बार आकर अपने जीवन मे परिवर्तन का अनुभव करना चाहिए।
तीर्थ वंदन महा अभिनन्दन यात्रा का हुआ जैनों के महातीर्थ सम्मेदशिखर पर मंगल वंदन हेतु प्रवेश
