जहां से अंग्रेजों को भी भागना पड़ा, ग्रामीण तालाब से नहीं लेते पानी
उदयपुर । राजस्थान के वेटलैंड की सूची में शामिल उदयपुर जिले का मेनार गांव पक्षियों के लिए पूरी तरह समर्पित है। मेनार के जलाशयों पर पक्षी दर्शन के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ने के बाद वहां परिंदो की अठखेलियों में किसी प्रकार का खलल ना पड़े इस कारण कई बातों का ध्यान रखा जाता है। यहां तक ग्रामीण तालाब पेटे में किसी तरह की बुवाई नहीं करते और ना ही सिंचाई के लिए गांव के दोनों तालाबों से पानी नहीं लेते।
पक्षियों के लिए पूरी तरह समर्पित मेनार गांव में ब्रह्म तालाब और ढंड तालाब के नाम से दो जलाशय मौजूद हैं, जहां 250 से अधिक माइग्रेट पक्षी हर साल यहां आते ही नहीं, बल्कि उन्होंने इस गांव के जलाशय तथा उसके आसपास के स्थल को अपना बसेरा बना लिया है। राजस्थान सरकार के अधिसूचित किए जाने के बाद वन विभाग ने यहां ढंड-ब्राह्म वेटलैंड कॉम्प्लेक्स की तैयारी शुरू कर दी है। 132 हेक्टेयर क्षेत्रफल के इस कॉम्पलेक्स में 80 हेक्टेयर ढंड तालाब और बाकी 52 हेक्टेयर ब्राह्म तालाब का है।
पक्षियों को बचाने की मुहिम दो सदी पहले से शुरू
गांव के लोग बताते हैं मेनार में पक्षियों को बचाने की मुहिम लगभग दो सदी पहले ही शुरू कर दी गई थी। ब्रिटिशकाल में 1832 में अंग्रेजों का एक दल इस गांव आया था। उस समय भी यहां देश—विदेश से काफी पक्षी आते थे। तब एक अंग्रेज ने यहां एक पक्षी का शिकार किया था। तब यहां ग्रामीणों ने एकत्रित होकर अंग्रेजों का मुकाबला किया और उन्हें गांव से खदेड़ दिया। उसके बाद यहां पक्षियों के संरक्षण को लेकर ग्रामीणों ने नियम बना दिए। जिसकी पालना इस गांव के लोगों को ही नहीं, बल्कि यहां आने वाले पर्यटकों को भी करनी पड़ती है।
पक्षियों के लिए लगती है पंचायत
मेनार गांव की एक और विशेषता है, जिसमें यहां पक्षियों के संरक्षण को लेकर पंचापत भी जुटती है। गांव के प्रमुख लोग नियम बनाते हैं तथा पक्षियों के साथ यहां तालाब को सुरक्षित रखने को लेकर निर्णय लेते हैं।
तालाबों से नहीं लेते पानी
गांव में लगभग एक हजार से अधिक परिवार रहते हैं और उनमें से ज्यादातर खेती से जुड़े हैं। फसल उगाने के लिए सिंचाई की जरूरत होती है और सामान्यत: गांव के समीपवर्ती तालाब तथा बांधों से सिंचाई के लिए पानी लिया जाता रहा है और विभाग भी सिंचाई के लिए तालाब और बांधों से पानी छोड़ता है। किन्तु मेनार गांव के लोगों ने तय कर लिया कि वह पक्षियों के संरक्षण को लेकर तालाबों से पानी नहीं लेंगे। यह नियम अब परम्परा बन गई है। पहले तालाब के खाली पेटे में खरबूजे और ककड़ी की खेती की जाती थी लेकिन पांच साल पहले गांव के पंचों ने निर्णय लेकर इसे बंद कर दिया।
पिछले साल वेटलेंड घोषित कर चुकी राज्य सरकार
राजस्थान सरकार ने प्रदेश के 44 स्थानों को वेटलेंड घोषित किया था। जिनमें से मेनार भी एक है, जो उदयपुर का इकलौता है। अगस्त 2023 में इसे वेटलेंड में शामिल किया गया। जिसके बाद यहां वेटलेंड कॉम्पलेक्स की तैयारी शुरू कर दी गई। अब मेनार गांव को बर्ड विलेज के नाम से भी जाना जाता है। वन विभाग से रामसर साइट घोषित करने के लिए प्रयासरत है। बताया गया कि यहां पांच हजार किलोमीटर तक का सफर तय करके साइबेरिया, चाइना, मंगोलिया, अफ्रीका, यूरोप तथा हिमालय क्षेत्र से पक्षी आते हैं।
52 फीट की शिव प्रतिमा है खास
मेनार गांव में ब्रह्म तालाब की पाल पर 52 फ़ीट की विशाल शिवप्रतिमा खास है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 76 से गुजरने वाले यात्रियों का ध्यान बरबस ही आकर्षित कर लेती है। इसका मेनार ग्राम के समाज सेवी और शिव भक्त प्रभु लाल जोशी ने साल 2008 में कराया था।
पक्षियों के समर्पित है उदयपुर का मेनार गांव
