– असम के बिहू ने जमाया असमिया लोक संस्कृति का रंग
– पंजाबी गिद्दा डांस में खूबसूरत गायकी और नृत्य ने रिझाया
उदयपुर। यहां शिल्पग्राम में गुरुवार शाम की फिजा में उस वक्त गीत-संगीत के विभिन्न रंगों की मिठास घुल गई, जब जयपुर के धोद ग्रुप ने महाराजा ब्रास बैंड की धुनें छेड़ी और महाराजा सियाजी राव यूनिवर्सिटी के कलाकारों ने म्यूजिकल सिंफनी की प्रस्तुति दी। इसके साथ ही पंजाब के गिद्दा, असम के बिहू और उत्तराखंड के छपेली नृत्यों ने लोक संस्कृति का शानदार समां बांधा।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धोद ग्रुप के जयपुर महाराजा ब्रास बैंड ने गुरुवार को विख्यात आर्टिस्ट रहीस भारती के निर्देशन में राजस्थानी लोक गीतों के साथ ही बॉलीवुड और शास्त्रीय गानों और संगीत का ऐसा शानदार फ्यूजन पेश किया कि पूरा मुक्ताकाशी मंच और शिल्पग्राम झूम उठा। इसमें राजस्थान के प्रसिद्ध लोक गीतों की शानदार प्रस्तुति ने हर बोल को जीवंत कर दिया। बैंड की प्रस्तुति के दौरान रहीस ने मोरनी बागां में बोली आधी रात में जैसे हर जुबां पर सजे गाने सुनाए…, और बैंड पर 16 मात्राओं के गाने पायलिया… की धुन बजाई तो हर लाइन और धुन पर हजारों लोगों की वाहवाही मिली। इसमें ट्रॉम्बून पर अब्दुल सत्तार खान, इस्माइल खान और फारूख, डुग्गा पर उस्ताद रमजान खां, अल्लारख व प्रभु तंबूर, बनवारी एल्फोनियम पर शानदार संगीत दिया।
वडोदरा की सिम्फनी ने हृदय किया झंकृत-महाराजा सियाजी राव यूनिवर्सिटी, वडोदरा के कलाकारों ने लोक, शास्त्रीय और पाश्चात्य वाद्ययंत्रों की कर्णप्रिय सिम्फनी पेश कर श्रोताओं का दिल जीत लिया। परंपरागत रूप से अलग-अलग इन वाद्य यंत्रों का यह अनूठा संगम रहा, जिन्हें एक साथ बांधने का कार्य युवा गायकों ने किया। इस प्रस्तुति ने विभिन्न संस्कृतियोें की एकता का सुरमई संदेश दिया।
इसके साथ ही लोक धुन ‘उगम’ की प्रस्तुति में राग तिलंग और पहाड़ी आधारित पंडित विभास रानडे की रचनाएं प्रस्तुत की गईं, इस पेशकश ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। पेशकश के अंत में ‘सुर ताल चक्र’ की मनमोहक प्रस्तुति ने श्रोताओं के हृदय को झंकृत कर दिया। इसमें राग पूरिया धनाश्री आधारित भारतीय संगीत को उम्दा ढंग से पश्चिमी वाद्यों के साथ पिरोया गया। इस प्रस्तुति का डॉ. केदार मुकादम ने संयोजन किया।
प्रारंभ में डॉ. राजेश केळकर की कम्पोज्ड राग पूरिया धनाश्री पर आधारित गणेश वंदना प्रस्तुत की गई, इसमें एक वाद्य यंत्र से आगाज हुआ और धीरे धीरे दूसरे इंस्ट्रूमेंट्स जुडे और पेशकश को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।
इन्होंने किया संगीतबद्ध-ढोल पर डॉ. केदार मुकादम, तबला-पखावज व अन्य ताल वाद्यों पर दक्षेश पटेल, द्विज गंधर्व, मिलन डोडिया और मानस वोरा, सितार पर डॉ. राहुल बरोडिया व ध्रुव व्यास, बांसुरी पर सारंग अधिकारी, सारंगी पर अर्पित मांडविया, गिटार पर अर्श शाह, शहनाई पर मुकुंद संत, वायलिन पर निदिश्वरलाल भजन व ओरिक्तो चटर्जी, की बोर्ड पर अंतु देबनाथ, ड्रम पर जय कुबावत ने संगीत दिया। जबकि गायन जनक जासकिया, यश देवले व स्वरित केळकर ने किया।
उत्तराखंड के छपेली डांस ने मोहा मन-पहाड़ी राज्यों, खासकर उत्तराखंड में गांव और परिवार में मांगलिक कार्यों के मौके पर युवा युवक-युवतियां मिलकर परंपरागत सामूहिक नृत्य छपेली करते हैं। इसमें जहां हुड़का वाद्य यंत्र बजाते युवक, युवतियों के रूप सौंदर्य की प्रशंसा कर उन्हें रिझाने का प्रयास कर रहे थे, वहीं कलाई पर खूबसूरत रंगीन रुमाल बांधे युवतियां लजाती, सकुचाती और अदाएं दिखाती हुईं उन्हें जवाब दे रही थीं। यहां शिल्पग्राम उत्सव के दौरान दस युवक-युवतियों ने ‘गांगुली लचका कमर…’ गाने पर यह डांस करते हुए शिल्पग्राम में पहाड़ी रस घोल हजारों दर्शकों का मन मोह लिया। इसमें 5-5 नर्तक-नर्तकियों ने परफॉर्म किया। स्वयं लोक नर्तक ललित विष्ट के निर्देशन में इस नृत्य के संगीतकारों में हुड़का पर नवीन चेनारिया और बांसुरी पर संतोष कुमार ने संगीत दिया। इनके साथ ही ढोलक और ढपली का भी प्रयोग किया गया।
बिहू नृत्य ने फिजा में बिखेरे असमी रंग-ओ जानूं ओए… मोए सेसा पानी, आहा ना सोनी ओए…, दिसांगोल पारोते… और नां गोल लोई… जैसे माहौल में मधुर रस घोलते सुरमई गानों पर पेश किए गए असम के बिहू लोक नृत्य ने दर्शकों का हृदय झंकृत कर दिया। इसमें असम की युवक युवतियों ने नयनाभिराम तालमेल दिखाया। इसमें ड्रम (विशेष रूप से दो सिर वाले ढोल), हॉर्न-पाइप और बांसुरी जैसे संगीत वाद्ययंत्रों का बहुत ही खूबसूरती से सुरमई प्रयोग किया गया।
‘बिहू’ के बारे में-इस लोक नृत्य की परंपरा असम के जातीय समूहों यथा कैवार्त्तस, देओरिस , सोनोवाल, कचारिस, चुटिया, बोरोस, मिसिंग्स, राभास, मोरन और बोराहिस, की संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण रही है। विद्वानों के अनुसार बिहू नृत्य भूमि की उर्वरता बढ़ाने की एक प्रार्थना माना जा सकता है। परंपरागत रूप से यह डांस स्थानीय कृषक महिला-पुरुष घर से बाहर, खेतों, जंगलों या नदियों के किनारे, विशेषकर अंजीर के पेड़ के नीचे नृत्य करते रहे हैं।
पंजाबी ‘गिद्दा’ पर झूमे दर्शक-पंजाब के साेनिया सोफट एंड ग्रुप की पंजाबी लोक नृत्य गिद्दा की धमक ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। लोगों ने उमंग और ऊर्जा के साथ खुद इसके गानों में सुर मिलाकर ताल के साथ तालियां बजाई। दरअसल, गिद्दा भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में महिलाओं का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है। यह पारंपरिक पंजाबी नृत्य के अन्य रूपों से इस मायने में भिन्न है कि इसे प्रस्तुत करने के लिए दो सिरों वाले बैरल ढोल ड्रम की आवश्यकता नहीं होती है। ‘गिद्दा’ पंजाब का एक लोक नृत्य है। यह पंजाब में खुशी के तमाम अवसरों के दौरान किया जाता है।
कलाकारों को किया सम्मानित-प्रस्तुतियों के बाद पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की निदेशक किरण सोनी गुप्ता व मधुकर गुप्ता ने कलाकारों को पोर्टफोलियो प्रदान किया और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
मुक्ताकाशी मंच प्रांगण में दो दिवसीय लाइन ड्राइंग कार्यशाला का गुरूवार को समापन हुआ। इसमें 20 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस कार्यशाला के विशेषज्ञ पश्चिम बंगाल से गोपाल चंद्र एवं उदयपुर से दिलीप डामोर थे। अंत में सभी प्रतिभागियों को केन्द्र निदेशक श्रीमती किरण सोनी गुप्ता द्वारा प्रमाण पत्र वितरित किए गए।