दूसरे दिन सिद्धपद की शरण मिलने पर आत्मा अमर बन जाती है : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री  

नवपद ओली के दूसरे दिन हुए विविध आयोजन  
– आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा  
– साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की  
उदयपुर 21 अक्टूबर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शनिवार को नवनद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा   ने श्री नवपद की आराधना के दूसरे दिन सिद्धपद के महत्त्व को बताते हुए कहा कि सिद्धपद की आराधना से जीवन में सरलता का उदय होता है, जीवन सरलता के साथ साथ सरसता से भी भर जाती हैं, काया-क्लेश मिट जाते हैं, एवं मधुरता से जीवन महकने लगता है, अनुपम भक्तिभाव से भक्ति गीत सहज मुखर जाती है। सिद्ध परमात्मा का स्वरूप बताते हुए अनंत ज्ञानियों ने कहा है कि जिनके समस्त दु:ख सम हो गये हैं, जिन्हें जन्म, जरा, मृत्यु और आठ कर्म का कोई भय नहीं है, बोधन नहीं हैं, जो प्रतिक्षण अनंत आनंद, परम सुख का अनुभव कर रहे हैं. जो अविनाशी स्वरूप है वे सिद्ध भगवान है! चार घाती, चार अघाली इन आठों कर्मो का सय करने पर सिद्ध बनते हैं। ज्ञानावरणीय कर्म के सम से अनंत ज्ञान गुण, दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से अनंत दर्शन- गुण, नेट्नीय कर्म के क्षय से अनंत सुख गुण, मोहनीय कर्म के क्षय से अनंत चारित्र गुण, आयुष्य कर्म के क्षय से अक्षय स्थितिगुण, नामकर्म के क्षय से अरुपी गुण, गोत्रकार्य के क्षय से अगुरुलघु गुण, अंतराय कर्म के क्षय से अनंत वीर्य गुण उत्पन्न होता है।  चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

By Udaipurviews

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