प्रकृति पर आधारित खेती को बढ़ावा देने की जरूरत – डॉ. राजेन्द्र सिंह

उदयपुर  07 अक्टुबर/ राजस्थान विद्यापीठ के संघटक  स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साईसेंस, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के संयुक्त तत्वाधान में महाविद्यालय के सभागार में किसानों के लिए कुसुम एवं अलसी की वैज्ञानिक खेती किस प्रकार हो, पर आयोजित प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर, मुख्य अतिथि मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व वाटर मैन ऑफ इंडिया डॉ राजेंद्र सिंह, डॉ. आरके माथुर, माधोसिंह चम्पावत, डॉ. गजेन्द्र माथुर, प्रो. आईजे माथुर ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्जवलित कर किया।
.प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि हमारे देश में अभी तक पेशेवर कृषि नहीं हुई है इसी  कारण 70 प्रतिशत हमारा कृषि प्रधान देश था जो आज 42 प्रतिशत पर आ गया है। किसानों के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा अनेक योजनाओं को जारी किया गया है जिस पर अनुदान भी दिया जा रहा है। किसानों को आत्म निर्भर बनाने व प्राकृतिक जीवन की पुनरस्थापना करने के उद्देश्य से विद्यापीठ पांच सौे गांवों को गोद लेगा और प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा उन्हे किस प्रकार कम पानी में कैसे अधिक पैदावार ले सके, वैज्ञानिक खेती किस प्रकार की  जाये, आधुनिक मशीनों से खेती करनी आदि के बारे में बताया जायेगा जिससे उनकी आय में भी वृद्वि हो सके और पर्यावरण को भी नुकसान न हो।  उन्होंने कहा कि हमें पुनः हमारी परम्परागत खेती की ओर लौटना होगा और मिलजुल कर खेती करनी होगी।
मुख्य अतिथि मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व वाटर मैन ऑफ इंडिया डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा कि हमें एग्रीकल्चर में प्रकृति खेती को बढ़ावा देना होगा जिसमें फर्टीलाईजर का उपयोग कम हो और उत्पाद अधिक हो। हमारा पानी प्रदुषित न हो इसका भी ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा कि अब हवा और पानी  बदल रहा है जिससे दुनिया उजड़ रही है।
प्रारंभ में संयोजक प्रो. आईजे माथुर ने प्रशिक्षण शिविर की जानकारी देते हुए बताया कि कोरोना काल के बाद अलसी का उपयोग अधिक होने लगा है, इसे औषधी के रूप में काम लिया जाने  लगा है। इसमें ओमेगा 03 होने से यह मधुमेह, गठिया, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कैंसर, मानसिक तनाव, दमा आदि बिमारियों में यह लाभदायक सिद्व हुई है। इसकी कम पानी में भी अधिक पैदावार ली जा सकती  है। कुसुम के तेल में एण्टीकोलेस्टेरॉल गुण होने के कारण इसका तेल हद्वय रोगियों के लिए काफी गुणकारी हैं इसमें कार्बोहाईट्रेड के अतिरिक्त विटामिन ए व डी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है व 30 से 35 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा अलसी की उन्नत खेती, कुसुम की उन्न खेती के फोल्डर का विमोचन एवं शिविर में आये किसानो को कुसुम व अलसी के बीजों का वितरण किया गया।

संचालन सौरभ, सोनिया जेसवानी किया जबकि आभार प्रो. एनएस सोलंकी ने जताया। प्रशिक्षण शिविर में 200 से अधिक किसान, पंच, सरपंच एवं महाविद्यालय के डीन , डायरेक्टर उपस्थित थे।

By Udaipurviews

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