भीलवाडा, 05 जून। कृषि विज्ञान केन्द्र एवं अरणिया घोड़ा शाहपुरा द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. सी.एम. यादव ने मानव जीवन पर पर्यावरण का प्रभाव एवं महत्त्व पर चर्चा करते हुए अपने क्षेत्र को स्वच्छ बनाने, अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ लगाकर संरक्षण करने और सिंगल यूज प्लास्टिक का बहिष्कार करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस का आयोजन किया जाता है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, अवैध खनन, कल कारखानों, कृषि में रसायनों के अन्धाधुन्ध उपयोग के कारण हमारा पर्यावरण दिनांे-दिन बिगड़ता जा रहा है जो गम्भीर चिन्ता का विषय है।
प्रोफेसर शस्य विज्ञान डॉ. के.सी. नागर, ने बताया कि वायुमण्ड़ल में कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड गैसों की सान्ध्रता बढ़ती जा रही है जिसके कारण वायुमण्ड़ल का तापमान बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण का पौधों, वनस्पतियों, जीव जन्तुओं, जलीय जीवों एवं ऐतिहासिक भवनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमें पर्यावरण की रक्षा में अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी ताकि स्वस्थ मानव जीवन की कल्पना की जा सके।
उद्यान वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानियाँ ने हरियाली और वृक्षारोपण रणनीतियों की नवीन तकनीकों से अवगत करवाते हुए राजस्थान के भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में बीजों के सदुपयोग द्वारा वन प्रजातियों के संवर्धन पर जोर दिया साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण एवं दाल, हल्दी, अदरक का मूल्य संवर्धन करना और स्वरोजगार हेतु बांस से अगरबत्ती स्टिक बनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की।
फार्म मैनेजर गोपाल लाल टेपन ने विलायती बबूल एवं जंगल के संवर्धन हेतु महुआ, करंज, नीम एवं रतन जोत के पेड़ लगाने का सुझाव दिया तथा बताया कि हमें पर्यावरण की हर संभव रक्षा करनी चाहिए ताकि स्वस्थ जीवन जीने की संभावना पृथ्वी पर हमेशा बनी रहें। तकनीकी सहायक हेमलता मीणा ने बताया कि आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे प्रत्येक देश के बीच पृथ्वी पर हर दिन प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहा है जिसके दुष्परिणाम समय-समय पर हमें देखने को मिल रहे है।
वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता प्रकाश कुमावत ने बताया कि जंगलों को नया जीवन देकर, पेड़-पौधे लगाकर, वर्षा के पानी को संरक्षित कर और तालाबों के निर्माण द्वारा हम पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से रिस्टोर कर सकते है। महेश सुवालका ने बताया कि खाद्य पदार्थों का अपव्यय, ग्लोबल वार्मिंग, वनो की कटाई, प्रदूषण, औद्योगिकीकरण जैसे पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कारकों पर नियन्त्रण करना बहुत जरूरी है। अतः हमें वन प्रबन्धन, ग्रीनहाऊस गैसों का नियन्त्रण, जैव ईंधन का उत्पादन और सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है। इस अवसर पर 100 किसानों ने भाग लिया जिन्हें सहजन के 2 पौधे एवं 100 मिर्च की पौध प्रति किसान उपलब्ध करवाई गई।