उदयपुर,11 मई | जीवन का मूल उदार दृष्टिकोण, आत्मीयता, वसुधैव कुटुंबकम और अहिंसा परमो धर्म ही है, जिसका अनुसरण कर व्यक्ति स्वस्थ सुसंस्कृत एवं सहिष्णु समाज की रचना में योगदान दे सकता है। यह बात गुरुवार को दिगम्बर जैन आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने नारायण सेवा संस्थान में विकलांगता सुधार सर्जरी के लिए देश के विभिन्न राज्यों से आए दिव्यांगजन को आशीर्वचन में कही। उन्होंने कहा कि दुखी, बेसहारा और पीड़ित जन की सेवा ईश्वर की साधना-आराधना का ही मार्ग है। इस दिशा में संस्थान ईश्वरीय कार्य कर रही है, जिसकी झलक देश-विदेश में प्राय: नजर आती है | उन्होंने कर्म बंध से मुक्ति का जिक्र करते हुए कहा कि पूर्वार्जित कर्मों की निर्जरा से ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होगा।
आरंभ में संस्थान- संस्थापक पद्मश्री कैलाश मानव ने आचार्यश्री सहित ससंघ की अगवानी करते हुए संस्थान की 38 वर्षीय सेवा यात्रा का साहित्य श्रीफल के साथ भेंट किया। संस्थान अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल ने आचार्यश्री का पाद-प्रक्षालन व ससंघ का अभिनंदन करते हुए कहा कि व्यक्ति के जीवन को सफल व सार्थक बनाने का मंत्र लेकर अहर्निशं विहार करने वाले आचार्यश्री के पग फेरे से संस्थान और दिव्यांगजन धन्य हो गए। आचार्यश्री ने दिव्यांग जनों के साथ बातचीत की और उनके लिए स्वरोजगारोन्मुखी प्रशिक्षणों का भी अवलोकन कर इसे पीड़ित मानवता के कल्याण का आवश्यक और अद्भुत कार्य बताया। इस दौरान ट्रस्ट्री निदेशक देवेन्द्र चौबीसा, विष्णु शर्मा हितैषी, भगवान प्रसाद गौड़, महिम जैन व जैन समाज के प्रमुख झमकलाल अखावत , सुन्दर लाल लुणदिया, रविश कावड़िया भी उपस्थित थे।
नारायण सेवा संस्थान को मिला आचार्य वर्धमान सागर जी का सानिध्य, सेवा देख बोले पीड़ितजन की सेवा ईश्वर की साधना
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