“वन है तो कल है”

1 मार्च वन दिवस के उपलक्ष्य में “विशेष लेख “
जमीन का अपना धर्म है -वह शील संयम और स्नेह के द्वारा माता की तरह हमारा पोषण करती है। इंसान इसी मिट्टी की उपज है ,इसी से पोषण पाता है और इसी मिट्टी में मिल जाता है। मिट्टी की साख को बचाने के लिए उपाय करना बहुत ज्यादा जरूरी है।
मिट्टी  को थामने के लिए पेड़ों की आवश्यकता होती है ,पेड़ होगे तो बाढ़ या तूफान से उपजाऊ मिट्टी बहकर या उड़कर इधर-उधर नही जा सकेगी। फिर जब अमृत वर्षा होगी तो धरती की कोख सोना उगलेंगी।
वनों की जगह आज तेजी से कंक्रीट के वन ले रहे है। शहरों और ग्रामीण विकास के चलते अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे है। हरित क्रांति के नाम पर शुरुवात में रासायनिक खाद और तमाम तरह के जहरीले उत्पादन बेचे गए और जब नुकसान सामने आने लगे तो बाजारवादी ले आए है जैविक खाद का नया रूप। ग्लेशियर पिघल रहे है ,समुद्र का जल स्तर 1.5 मीटर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। पर्यावरण प्रेमी विश्व पर्यावरण दिवस पर रेली निकाल कर संतुष्ट हो जाते है। बाजारवाद के चलते न किसी उद्योग की इसमें रुचि है न राजनीतिज्ञ की। आने वाले 150 वर्षों के बाद जलवायु परिवर्तन के चलते धरती का पर्यावरण किसी भी  प्राणी और मानव के रहने लायक नही रह जाएगा।
पहले वृक्ष कटते थे अब जंगल कट रहे है। नदियों को प्रदूषित कर दिया है ,समुद्र के भीतर की खुदाई का काम जारी है। इन सभी कारणों के चलते तूफानों ,भूकम्पों की संख्या बढ़ गई है। मौसम पूरी तरह बदल गया है।
प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाकर बार -बार मानव को चैतावनी दे रही है।
जब सामान्य जीवन प्रक्रिया में अवरोध होता है तब पर्यावरण की समस्या जन्म लेती है। यह अवरोध प्रकृति के कुछ तत्वों के अपने मौलिक अवस्था में न रहने और विकृत हो जाने से प्रकट होता है। इन तत्वों में प्रमुख जल ,वायु ,मिट्टी है। पर्यावरणीय समस्याओ से हम मुश्किल में पड़ जाएंगे ,जीवन मरण का प्रश्न आज हमारे सामने खड़ा है।
21 मार्च वन दिवस के इस अवसर पर हम सब प्रतिज्ञा करे कि वर्षा ऋतु जो आसन्न है, में विद्यालयों,खेल मैदानों के चारों और चारागाह भूमि पर ,खेतों में घरों में ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करेंगे।
वनों के संरक्षण हेतु गाँव गाँव में चेतना की लहर फैलानी होगी ,वृक्षारोपण हेतु मुहिम चलानी होगी ,सबको इस मुहिम से जुड़ना होगा। युवा पीढ़ी को आगे आना होगा। कुटीर उद्योगों पर बल देना होगा। सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम लागू करने होगे। जनसंख्या पर रोक लगानी होगी ,समय रहते हुए संभलकर निःस्वार्थ भाव से विचार करना होगा ,क्योकि पर्यावरणीय समस्या स्वार्थमय मनोवृत्ति की वजह से ही है। मानवीय और प्राकृतिक पर्यावरणीय तन्त्रों में परस्पर सह-संबंधों की मौलिक जानकारी में सुधार करने हेतु वैज्ञानिक प्रयास अपेक्षित है। यदि अभी भी सही दिशा में ठोस उपाय किए जाए तो आने वाली विभीषिका को टाला जा सकता है।
स्पष्ठ है कि उक्त समस्या से निपटना ,पृथ्वी की रक्षा करना किसी एक मानव ,देश से संभव नही है। इसके लिए सभी देशों की सम्मिलित क्रियाशील भागीदारी तथा उनके तकनीकी,वैज्ञानिक एवं आर्थिक सहयोग अपरिहार्य है तभी पृथ्वी की रक्षा संभव है।
सोनिया सेन
अध्यापिका

By Udaipurviews

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