20,मार्च गौरैया दिवस पर विशेष आलेख…
कुदरत ने सुंदर संसार को रचा जिसमे फूलों की सुगंध है,फलों में मिठास है,आसमान में परवाज़ भरने वाले पंछी है,पानी में क्रीड़ा करने वाले जलचर है,उछलती उमगती किलकती चंचल नदियां है,तुषार धवल पर्वत है,नाना श्रृंगार किए वन और झूमती फसलों पर मंडराती तितलिया है, झीमिर झीमीर बरखा है,बसंत है,बहार है, और प्यारी प्यारी गौरैया है।
चीं,चीं की आवाज़ करती,मुंह में तिनके दबाये आवा जाही करती खूबसूरत,मासूम, प्यारी सी गौरैया हम सबने देखी है।बचपन
से इसे देखते हुए ही हम बड़े हुए हैं।
पिछले कुछ समय से इंसानों द्वारा पर्यावरण से छेड़ छाड़ की गई , निजी स्वार्थों को सिद्ध करने हेतु भारी नुकसान पहुंचाया गया है। वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण,भूमि प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण के चलते इस नन्हे जीव के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।अब ये नन्ही चिड़िया बहुत कम दिखती है और कही कही तो बिलकुल नहीं दिखती।
घरों के रोशनदानों में अपने घरों को सहेजती,आंगन को गुलजार करती,बच्चों को चुग्गा खिलाती गौरैया ने हम सबके मन को मोहा है।
गौरैया की आबादी में 60% से 80% की कमी आई है। ये संपूर्ण विश्व में ये पाई जाती है।गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिक है। कीड़े एवम अनाज इसका भोजन है।इसे शहरों की अपेक्षा गांव अधिक प्रिय है।
सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद दिलावरजी जैसे लोगो के प्रयासों की वजह से संपूर्ण विश्व में 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस नन्हे पक्षी के संरक्षण की आवश्यकता है।
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई,किटनाशकों का प्रयोग,कानफाड़ू आवाजों आदि के चलते नन्ही गौरैया पर संकट के बादल मंडरा रहे।
प्रकृति और हम इंसानों में संतुलन बना रहे इस हेतु हमे प्रकृति ,जीव जगत के संरक्षण हेतु कटी बद्ध होकर मुहिम चलानी पड़ेगी।
हर घर में,ऑफिस में,मंदिरों में,मस्जिदों में गुरुद्वारों में इनके रहने,खाने का उचित प्रबंध करना पड़ेगा।इनके लिए बर्ड फीडर लगाए जाए,पानी हेतु मिट्टी के बर्तन रखे जाये,प्रदूषण रोकथाम के प्रयास किए जाए।
ये दिवस मनाने की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब हम इस जीव का अस्तित्व बचा पाएंगे। प्रकृति का संरक्षण हर जीव का संरक्षण है,आओ लौटे वापस हमारी समृद्धशाली परंपराओं संस्कृति की तरफ जिसमे प्रकृति को पूजा जाता था। आओ पूजा करे नदियों की,सागरों की,वृक्षों की,पर्वतों की,जीवो की।
हमारा प्रयास ही हमारा पुरुस्कार है।समृद्ध प्रकृति समृद्धि के द्वार तभी खोलेगी जब हम उससे तालमेल बैठा कर चलेंगे।प्रकृति का संरक्षण आज की महती आवश्यकता है।आज अगर नन्ही गौरैया के अस्तित्व पर संकट आया है कल हम इंसानों का अस्तित्व भी खतरे में है।बच नही पाएंगे हम भी अगर जीवों को नही बचाया तो।
सावधान मनुष्य…….
भूपेंद्र तिवारी, व्यख्याता,भूगोल,प्रतापगढ़