रसायनों के अधिक इस्तेमाल से अफीम की फसल को हो रहा है नुकसान
चित्तौड़गढ़ 27 जनवरी। कृषि (विस्तार) जिला परिषद् चित्तौड़गढ़ के अधिकारियों एवं वैज्ञानिको की संयुक्त टीम ने पंचायत समिति भदेसर के सोनियाणा, रेवलिया कला, दौलतपुरा, सुरपुर, पीपलवास, मुरलिया आदि गांवों का दौरा कर अफ़ीम की फसल में खराबे की जांच की। जांच में रसायनों के अधिक इस्तेमाल से अफीम की फसल में खराबे की बात सामने आई हैं। विभाग ने किसानों को अपने क्षेत्र में कार्यरत कृषि कार्मिको से सम्पर्क कर कीटनाशक रसायनो का छिड़काव करने की सलाह दी हैं।
उप निदेशक कृषि (आईपीएम) ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि अफीम एक नकदी फसल होने से किसानों में भ्रांति है कि रसायनों के ज्यादा उपयोग करने से अफीम फसल में दूध की मात्रा बढेगी एवं उत्पादन ज्यादा होगा इस हेतु बिना जानकारी लिए अत्यधिक कीटनाशक रसायनों एवं रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते है जो हानिकारक है।
कृषि खण्ड भीलवाडा एवं कृषि महाविद्यालय भीलवाड़ा के पूर्व डीन डॉ. किशन जीनगर ने बताया कि कृषकों ने पौधो की बढ़वार के लिए जिब्रेलिक एसिटिक एसिड एवं नेफथेलिन एसिटिक एसिड का बिना सलाह के उपयोग किया गया जो कि अफीम की फसल के लिए घातक सिद्ध हुआ हैं। किसानों से वार्ता करने के पश्चात् भ्रमण दल के संज्ञान में आया कि निम्बाहेडा में स्थित ई-किसान आदान विक्रेता द्वारा क्षेत्र के कई किसानों को गुमराह करते हुए अफीम की फसल में दूध की मात्रा बढ़ने एवं अफीम फसल अच्छी होने की बात कहते हुए अत्यधिक मात्रा में पौध बढ़वार रसायनों का उपयोग करने हेतु विक्रय किया गया। अतिरिक्त निदेशक कृषि (विस्तार) भीलवाड़ा कार्यालय के दिलीप सिंह, सहायक निदेशक (पौध संरक्षण) ने बताया कि कृषि आदान लेते समय विक्रेता से पक्का बिल अवश्य लेवें ताकि फसल खराब होने की स्थिति में कृषि आदान विक्रेता पर नियमानुसार कार्यवाही की जा सके।
अफ़ीम में होने वाले रोग एवं उसके उपचार :
बारनी कृषि अनुसंधान केन्द्र आरजिया भीलवाडा के पौध व्याधि वैज्ञानिक डॉ. ललित छाता ने बताया कि अफीम फसल मुख्य रूप में डाउनी मिल्ड्यू (काली मस्सी) पाउडरी मिल्ड्यू, जड गलन, डोडा सडन एवं तना सडन आदि रोग आते है तथा समय पर पता लगने पर इनका उपचार संभव है। डॉ. छाता ने जड गलन, तना सडन एवं डाउनी मिल्ड्यू (काली मस्सी) के प्रकोप होने पर रिडोमिल एम जेड तथा डोडा लट एवं अन्य कीट आने का स्थिति में प्रोफेनोफॉस या
मोनोक्रोटोफॉस आदि का छिड़काव कृषि कर्मियों से सलाह लेकर किया जा सकता हैं।