सनातनी साहित्यकार कपिल पालीवाल ने कविताओं से किया शिवचरणों का शब्दाभिषेक
‘जब से सुना है तुम भोले हो, आक हो जाता हूं मैं..जब देखा दिगंबर तुमको राख हो जाता हूं मैं’
नाथद्वारा, 1 अगस्त। शिव आराधना के लिए पवित्र श्रावण मास में श्रीजी की नगरी नाथद्वारा में शिवमूर्ति परिसर विश्वास स्वरूपम में उदयपुर के ख्यात गीतकार एवं शायर की एकल सनातनी प्रस्तुति के रूप में शब्दाभिषेक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती के समक्ष अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। गीतकार एवं शायर कपिल पालीवाल ने शब्दाभिषेक में सनातनी शायरी और गीतों के रुप में एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देकर समा बांध दिया। उन्होंने रोचक शैली में वर्तमान प्रसंगों को भी गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि शब्दाभिषेक ईश्वर आराधना का अतिसुन्दर माध्यम है और यदि श्रावण मास में शिवचरणों में ऐसा शब्दाभिषेक करने का मौका मिले तो जीवन धन्य हो जाता है। इससे पूर्व विश्वास स्वरूपम जीएम
महेश सोमानी, आॅपरेशन हेड राकेश झा व लाईट एण्ड साउंड हेड विवेक चैरसिया ने अतिथियों का स्वागत किया और श्रावण मास की विविध गतिविधियों के आयोजन के बारे में बताया। शब्दाभिषेक की स्तुति एवं रचनाओं के बीच में शहर के गायक जितेंद्र गंधर्व ने अपने सुरों से शब्द अभिषेक की प्रस्तुति कर आनंदित कर दिया। कार्यक्रम में दीपक बागोड़ा, राजेश पुरोहित एवं कई कला संगीत एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
शिवमयी काव्य गंगा हुई प्रवाहित- श्रावण मास के मौके पर हुए इस शब्दाभिषेक में गीतकार पालीवाल ने शिवाराधना स्वरूप कई कविताएं प्रस्तुत कर जैसे काव्य गंगा का अवगाहन सा कर दिया। उन्होंने ‘तुम ही समय हो…तुम ही भय हो…तुम ही एक… अक्षय निर्भय हो…, तुम आकाश तुम पाताल..समयातीत तुम हो महाकाल… पंक्तियों के साथ ‘कुछ नहीं शिव के सिवाय…नमः नमः नमो नमो शिवाय…. प्रस्तुत की वहीं उन्होंने अपनी पंक्तियां ‘जब से सुना है तुम भोले हो, आक हो जाता हूं मैं..जब देखा दिगंबर तुमको राख हो जाता हूं मैं… प्रस्तुत की तो मौजूद हजारों लोगों ने करतल ध्वनि से सराहना की। उन्होंने ‘शाला हूं मधुशाला हूं…,हाला हूं विष प्याला हूं.., अंधेरा हूं उजाला हूं.., शीतल हूं ज्वाला हूं..मैं शिव हूं शिवाला हूं… पंक्तियों के साथ शिव की अन्य संज्ञाओं अघोर,मतवाला, अर्धनारीश्वर’ आदि को प्रस्तुत कर माहौल को शिवमयी बना दिया।
हर पंक्ति में झरा शिव अमृत- कवि-गीतकार कपिल पालीवाल ने अपनी हर एक पंक्ति से शिव आराधना की और ऐसा अहसास कराया कि हर एक पंक्ति से शिव अमृत झर रहा हो। उन्होंने अपनी पंक्तियां ‘अनल गगन तरल पवन..सघन मगन प्रणव चरण…शरण सकल जनम मरण..प्रथम करण अन्त हरण..त्वमेव केवलम शिवम्. के साथ ही ‘गंग संग संग रंग…भस्म ओढ़े अंग अंग.., प्रचंड शोभ गल भुजंग.. भयावह अतिशुभ प्रसंग…दिग दिगंत मन महंत..त्वमेव केवलम शिवम् प्रस्तुत की वहीं उन्होंने अपनी मनोहारी प्रस्तुति ‘ सत्यम शिवम हे सुंदरा..हे त्रिनेत्रधारी दिगंबरा..तुम्हरी शरण अभयंकरा.पाहिमाम शिव शंकरा…कृपा करो हे सबके देव..त्वं शंभो काल त्वमेव..तेरा अंश है गगन धरा..हे उमापति गंग धरा..करो कृपा हे दिगंबरा…तुम दयालु कर्ता कृत्य हो..भयावह तांडव नृत्य हो…पापांे से मैं लबालब भरा..तुम तार लो अभयंकरा..प्रस्तुत की तो लोगों ने इसकी सराहना की। इसी प्रकार उन्होंने ‘दर्शन को कब से खड़ा हूं मैं..तेरे द्वारे पड़ा हूं मैं.. तू है बड़ा सारे बड़ों में..पापियों में सबसे बड़ा हूं मैं.. प्रस्तुत कर लोगों को आकर्षित किया।