वागड़ का लोकोत्सव : मंगलवार को अंचल भर में रहेगी मंछाव्रत चौथ महोत्सव की धूम

अनूठा है 88 वर्षीय परम् शिवभक्त श्री शांतिलाल भावसार का समर्पण
लगातार 62 साल से करा रहे हैं कथा श्रवण
हजारों व्रती हर साल होते हैं लाभान्वित*

 – डॉ. दीपक आचार्य
बाँसवाड़ा, 04 नवम्बर/मनोकामनापूर्ति के लिए वागड़ अंचल की सदियों पुरानी मन्छाव्रत चतुर्थी व्रत की परम्परा और इससे जुड़ी रोचक कथाएं-अन्तर्कथाएं और शिवभक्तों का समर्पित श्रृद्धाभाव सुनने-देखने लायक है।

इस बार मंछाव्रत चौथ का व्रत 5 नवम्बर 2024, मंगलवार को मनाया जाएगा। बांसवाड़ा संभाग मुख्यालय पर एक ही परिसर में तीन-तीन स्वयंभू शिवलिंगों के धाम वनेश्वर महादेव मन्दिर पर व्रती नर-नारियों का मेला भरेगा और सम्पूर्ण परिसर में विशिष्ट भोग बनाकर प्रसाद पाया जाएगा।

हर वर्ष श्रावण माह से आरंभ होकर कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पूर्ण होने वाला चार माही व्रत इतना अधिक प्रसिद्ध और लोकमान्य है कि इसे हर प्रकार की मनोकामना पूरी होने का वरदान देने वाला व्रत माना जाता है।

यही कारण है कि वागड़ अंचल में पालों-फलों और पर्वतीय अंचलों से लेकर गांव-कस्बों और शहरों तक के भक्तजन इसे श्रृद्धापूर्वक करते हैं।

स्तुत्य है अतुलनीय योगदान
हजारों परिवारों में पीढ़ियों से इस मंछाव्रत चौथ का परिपालन हो रहा है। शिवभक्ति प्रधान इस लोक व्रत में दशकों से जुड़े कई शिवभक्तों में बांसवाड़ा निवासी 88 वर्षीय शिक्षाविद् श्री शांतिलाल भावसार का नाम अग्रगण्य है, जिन्हें धर्म-अध्यात्म और सकारात्मक सामाजिक-आंचलिक गतिविधियों से संबंधित आयोजनों में अग्रिम पंक्ति में गिना जाता है।

परम शिवभक्त श्री शान्तिलाल भावसार(गुरुजी) शिवभक्ति में बचपन से रमे हुए हैं। विगत 62 वर्ष से वे स्वयं मंछाव्रत चतुर्थी का व्रत करते आ रहे हैं। स्वयं व्रत करने के साथ ही वे इतने ही वर्षों से मंछाव्रत चौथ की कथा व्रतियों को श्रवण कराते रहे हैं।

इसके अन्तर्गत व्रत की शुरूआत के दिन श्रावण शुक्ल चतुर्थी से लेकर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तक हर सोमवार को श्री शांतिलाल भावसार व्रतियों का कथा सुनाते आ रहे हैं।

बड़ी संख्या में व्रतियों की वजह से कई बार पांच-छह चरणों में कथा का श्रवण कराना पड़ता है। इसके अन्तर्गत प्रातःकाल 6 से मध्याह्न पूर्व तक 3 से 4 हजार व्रती एवं अन्य श्रृद्धालु कथा का श्रवण करते हैं। हालांकि उनके अलावा कई अन्य कथावाचक भी हैं जो इन दिनों में कथा सुनाते हैं।

मंछाव्रत चौथ व इससे पूर्व के सोमवारों को होने वाली कथाओं के दौरान् श्रृद्धालुओं द्वारा दिए जाने वाले सहयोग से मन्दिर परिसर में आवश्यक सुविधाओं और सेवाओं की व्यवस्था के साथ ही मंछाव्रत चौथ पर मन्दिर एवं परिसरों की रंगाई-पुताई करवायी जाती है।

शिव को समर्पित है यह व्रत
जनमानस में सदियों से गहरा लोक विश्वास रहा है कि मंछाव्रत का पालन करने से जीवन की हर प्रकार की समस्या और अभाव दूर हो जाते हैं और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत होता है।

चार माह तक व्रत रखने वाले व्रती शिव मन्दिर परिसर में भगवान शिव को साक्षी मानकर चार गांठों वाले धागे की गांठों को खोलकर सीधा करते हैं तथा इस धागे के साथ एक रुपया व सुपारी रखते हैं और मंछाव्रत चौथ की कथा का श्रवण करने के बाद इस सामग्री को शिव मन्दिर में चढ़ा देते हैं और भगवान के समक्ष अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना निवेदित करते हैं।

अनूठा है शिव भोग और इसका वितरण अनुपात
व्रती नर-नारी अपने घर पर या मन्दिर परिसरों में चूल्हे व कण्डे स्थापित कर लड्डू आदि बनाते हैं और शिव को भोग लगाने के बाद परिवारजनों के साथ प्रसाद पाते हैं।

इस भोग में शामिल की जाने वाली सामग्री और भोग को पाने वालों का भी स्पष्ट नियम होता है। इसके अन्तर्गत लड्डू बनाने के लिए 4 किलो आटा, सवा किलो शुद्ध घी और 1 किलो गुड़ का प्रयोग किया जाता है। इस सम्पूर्ण भोग सामग्री का वितरण भी प्रकृति के जीवों और जगत के कल्याण का संदेश देता है।

कुल सामग्री में से एक भाग भगवान महादेव के लिए, एक भाग चींटयों और कीड़े-मकौड़ों के लिए, एक भाग छोटे-छोटे बच्चों के लिए, एक भाग गोचारण कराने वाले ग्वाल के लिए होता है। और शेष भाग व्रती नर-नारियों तथा उनके परिजनों के लिए प्रसाद के रूप में निर्धारित रहता है।

चातुर्मास की ही तरह चार माह तक त्याग-तपस्या का जीवन व्यतीत करते हुए किया जाने वाला मंछाव्रत न केवल शिवभक्ति के अगाध आस्था सागर का दिग्दर्शन कराता है बल्कि प्रकृति से लेकर जीवों और जगत के कल्याण का भी संदेश देता रहा है। सदियों पुरानी यह परम्परा वागड़ अंचल में व्यष्टि से लेकर समष्टि के मंगल की पुरातन परिपाटियों से साक्षात् करा रही है। (इस बारे में अधिक जानकारी के लिए श्री शांतिलाल भावसार से उनके मोबाइल नम्बर – 9414102023 से सम्पर्क किया जा सकता है। )

By Udaipurviews

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