भगवान बिरसा मुंडा जयंति एवं जनजातीय गौरव दिवस पर
त्रुटि सुधार से ही मिलेगा जनजाति नायको को सम्मान – मीणा
लोक गीत – संगीत जनजाति इतिहास की कुंजी – प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर 16 नवम्बर / जनजातियों का इतिहास उनके राष्ट्रप्रेम और मातृभूति के लिए बलिदान से भरा हुआ है। आवश्यकता इस बात की है कि अब तक जनजाति सैनानियों की जो अनदेखी हुई है उसे सुधार कर आवश्यक एवं वंचित रहे विषयों को इतिहास में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इससे वर्तमान एवं भावी पीढ़ी अपनरे गुमनाम सैनानियों को जान पाए साथ ही साथ अपने इतिहास के अनछूए तथ्यों से भी रूबरू हो सके। इस महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी इतिहासविद्ों के कंधों पर है। आदिवासी के गीतों व लोक गीतों और भजनों को समझ कर उनके इतिहास को सबके सामने रखना होगा। इतिहासकारों के लेखन और शब्दों की उर्जा से वर्तमान पीढी को उर्जा प्रदान कर वंचित नायकों को पुनप्रतिष्ठित करने का कार्य भी इतिहासकारों को ही करना होगा। मानगढ़ जैसे धाम को भी राष्ट्रीय स्तर पर गौरव प्रदान कर हमें अपनी त्रुटियों को सुधारना होगा। उक्त विचार बुधवार को भगवान बिरसा मंुडा जयंती एवं जनजातीय गौरव दिवस पर माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान एवं जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वावधान प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में ‘‘ राजस्थान के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी ’’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने व्यक्त किए।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवेात ने कहा कि राजस्थानी परम्पराओं में गीतों व लोकगीतों के माध्यम से बात कहने का रिवाज पुरातन काल से है और यही रिवाज अनजाने, अनछूए जनजाति इतिहास व गाथाओं को प्रकट करने की बडी कुंजी साबित हो सकता है। निष्पक्ष और तथ्यात्मक इतिहास लेखन द्वारा जनजाति सैनानियों इतिहास में वांछित सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाने की बात कहते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने बताया कि हमारी जनजातियों में प्रकृति व पर्यावरण के प्रति अद्भूत तारतम्य देखा गया है। सतत् विकास के मायने भी जनजातियों से सीखे जा सकते है। उन्होने कहा कि जनजातियॉ विकट से विकट समय में भी मातृभूमि से प्रेम और प्रकृति के प्रति अपने उत्तरदायित्व से पीछे नहीं हटती है। हमें यह भी इनसे सीखने की जरूरत है।
निदेशक प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए दो दिवसीय संगोष्ठी की जानकारी देते हुए बताया कि दो दिवसीय संगोष्ठी में शोध पत्रों एवं पत्रवाचन खुली चर्चा के माध्यम से महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी सामने आई। साथ ही इन तथ्यों के माध्यम से संगोष्ठी विषय पर आधारित भावी योजनाओं और प्रयासों को स्वरूप प्रदान करने के लिए भी साहित्य संस्था अपनी भागीदारी तय करेगी।
टीआरआई के निदेशक महेश चन्द्र जोशी ने कहा कि उनका संस्थान भूले बिसरे किन्तु सर्वस्थ समर्पण करने वाले आदिवासी व जनजाति सैनानियों के गौरव को उचित स्थान दिलाने के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है। जनजाति इतिहास से जुड़ी जानकारी, तथ्य और संदर्भो को प्राप्त कर उनके प्रलेखन का कार्य किया जा रहा है। इसके माध्यम से जनजातियों की संस्कृति व इतिहास में छूपी वैज्ञानिकता को सामने लाया जा सके। साथ ही साथ त्रुटियों को सही करने, उनके महत्व को सामने रख जा सके।
विशिष्ठ अतिथि कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि हल्दीघाटी युद्ध के दौरान जनजाति समुदाय के हर वर्ग ने महाराणा प्रताप का तन, मन व धन से सहायता की। इस दौरान शहीद हुए अज्ञात व्यक्तियों का ही इतिहास लेखन किया जाना आवश्यक है।
शोध अधिकारी डॉ. कुल शेखर व्यास ने बताया कि दो दिवसीय संगोष्ठी में जेके ओझा तथा भूमिका त्रिवेदी द्वारा लोक गीतों , जनजाति, गुजरात के अरूण वाघेला ने मानगढ धाम, सुशीला शक्तावत ने गोविन्द गिरी, पिय्रदर्शी ओझा ने अज्ञात जनजाति स्वतंत्रता सैनानियों तथा कालीबाई , नाना भाई खांट आदि पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। संचालन डॉ. कुल शेखर व्यास ने किया।