मूंगफली वैज्ञानिकों का संकल्प – हम बनाएंगे भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर

– ’मूंगफली – 2025’ विषयक राष्ट्रीय बैठक आरंभ
– देश भर के दो सौ मूंगफली वैज्ञानिक ले रहे भाग

उदयपुर, 18 मार्च। खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता और वर्ष 2047 तक भारत केा विकसित राष्ट्र बनाने संबंधी स्वप्न को स्वीकार करने की विलक्षण क्षमता हमारे कृषि वैज्ञानिकों में है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन को मुजूरी दी है जो राष्ट्रीय तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक पहल है। मिशन को 2024-2025 से 2030-31 तक सात साल की अवधि में लागू किया जाएगा, जिस पर 10,103 करोड़ रूपए का वित्तीय परिव्यय होगा। मिशन का लक्ष्य इस दशक के अंत तक प्राथमिक तिलहन उत्पादन को 39 मिलीयन टन से बढ़ाकर 69.7 मिलीयन टन करना है। इस बड़ी चुनौती केा मूंगफली वैज्ञानिकों के रूप में हमे इस मिशन में अपना योगदान सुनिश्चित करना हेागा।
यह बात महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर  के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने मंगलवार को यहां राजस्थान कृषि महाविद्यालय सभागार मंे देश भर से आए मूगंफली वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कही। डॉ. कर्नाटक ’मूंगफली – 2025’ विषय पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की वार्षिक समूह बैठक को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। तीन दिन चलने वाली यह बैठक भरतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से संबद्ध भारतीय मूंगफली अनुसंधान संस्थान जूनागढ़ (गुजरात) और एमपीयूएटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जा रही है। बैठक में देश भर से लगभग दो सौ मूंगफली वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।
डॉ. कर्नाटक ने वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि मूंगफली के अनुवांशिक आधार को व्यापक बनाने के लिए प्री-ब्रीडिंग पर जोर दिया जाना चाहिए। यही नहीं अलग- अलग बाजार खंडों पर ध्यान केन्द्रित करके हितधारकों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करना होगा। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में अत्यधिक पोष्टिक बेहतर किस्मों को विकसित करने के लिए प्रजनन को गति दी जा सकती है। मांग आधारित प्रजनन दृष्टिकोण वैज्ञानिकों को उच्च प्रदर्शन वाली किस्मों को विकसित करने में सक्षम बना सकता है जो ग्राहकों को आवश्यकताओं और बाजार की मांग को पूरा करती है। इसके अलावा जीआईएस-जीपीएस और एआई/एमएल जैसी नवीनतम तकनीकों का उपयोग करके सर्वेक्षण आज की महत्वपूर्ण आवयश्कता है। उन्होंने कहा कि मूंगफली की खेती मेें मशीनीकरण का कार्यान्वयन, विशेष रूप से कीटों और बीमारियों की निगरानी में ड्रोन तकनीक में उत्कृष्टता हासिल की जानी चाहिए। आज जब हम कृषि 4.0 और डिजिटल कृषि की बात कर रहे हैं तो मूंगफली की खेती को प्रौद्योगिकी के उपयोग से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईसीएआर नई दिल्ली के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. डी. के. यादव ने मूंगफली वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि अब समय आ गया है कि अधिक उपज देने वाली, जलवायु अनुकुल और रोग प्रतिरोधी मूंगफली की किस्मों का विकास किया जाए। विश्व में सौ से अधिक देशों में मूंगफली उगाई जाती है। चीन पहले पायदान पर है जबकि भारत मूंगफली उत्पादन में दूसरा स्थान रखता है। इसके अलावा नाइजीरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और सूडान भी मूंगफली उत्पादक शीर्ष देशों में शुमार है। यह वनस्पति तेल और प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मूंगफली अनुसंधान संस्थान जूनागढ़ (गुजरात) और इसके सहयोगी केन्द्र देश में मूंगफली उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। समन्वित अनुसंधान, बीज सुधार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत का मूंगफली क्षेत्र उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर अग्रसर है। उन्होंने विश्वास जताया कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की वार्षिक समूह बैठक में आए वैज्ञानिक मूंगफली अनुसंधान एवं विकास के नए मानक स्थापित करेंगे।
आईसीएआर नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि खाद्य तेलों के क्षेत्र आत्मनिर्भरता की चुनौतियां कम नहीं है। सूरजमुखी, सोयाबीन, सरसों, तिल अरण्डी और मूंगफली प्रमुख तिलहनी फसले हैं लेकिन मूंगफली ’विलक्षण फसल’ है जिसमें 40 प्रतिशत तेल और 20 प्रतिशत प्रोटीन उपलब्ध है। सोयाबीन में तेल का 18 प्रतिशत ही हैं। वैज्ञानिकों को मूंगफली की ऐसी किस्मंें ईजाद करनी होंगी जिनमें तेल की उपलब्धता 50-55 प्रतिशत तक हो। वर्तमान में भारत अपनी खाद्य तेलों की आवश्यकताओं का लगभग 57 प्रतिशत आयात करता है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन का उद्देश्य प्रति हैक्टेयर तिलहनी उपज को 1,353 किलोग्राम से बढ़ाकर 2,112 किलोग्राम करना और वर्ष 2030-31 तक घरेलू खाद्य तेलों का उत्पादन 12.7 मिलीयन टन से बढ़ाकर 20.2 मिलीयन टन करना है। यहीं नही तिलहन की खेती के क्षेत्रफल में 40 लाख हैक्टेयर तक की वृद्धि मिशन का लक्ष्य हैै। इसके लिए चावल और आलू की परती भूमि को लक्षित किया जाएगा। इसके अलावा पाम तेल की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
आरंभ में भारतीय मूंगफली अनुसंधान संस्थान (आईआईजीआर) जूनागढ़ (गुजरात) के निदेशक डॉ. एस.के. बेरा ने संस्थान की ओर से मूंगफली फसल सुधार, उत्पादन तकनीकी संरक्षण, रणनीतियां, फसल प्रबंधन व मूल्य संवर्धन की दिशा में किए जा रहे कार्यांे का ब्योरा दिया। साथ ही बैठक में आए मूंगफली शोधकर्ता, सार्वजनिक और निजी बीज उद्योगों के प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि हम सभी का समग्र प्रयास अवश्य रंग लाएगा व देश खाद्य तेलों मेें आत्मनिर्भर अवश्य बनेगा। किसानों की आय में वृद्धि होगी, आयात में कमी आएगी, तो विदेशी मुद्रा का संरक्षण भी होगा।
कार्यक्रम में डॉ. ए. आर. पाठक, पूर्व कुलपति कृषि विश्वविद्यालय जूनागढ़ व नवसारी, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एस.एन. निगम, डॉ. नटराजन सहित कई नामचीन मूंगफली वैज्ञानिकों ने भाग लिया। आरंभ में निदेशक अनुसंधान डॉ. अरविन्द वर्मा ने स्वागत उद्बोधन दिया। डॉ. प्रताप भान सिंह मूंगफली वैज्ञानिक ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. लतिका शर्मा ने किया।

पुस्तक विमोचन

कार्यक्रम के दौरान मूंगफली वैज्ञानिकों द्वारा लिखित कुल 6 किताबों का विमोचन किया गया। इनमें एमपीयूएटी के मूंगफली वैज्ञानिक डॉ. पी. बी. सिंह एवं टीम द्वारा लिखित ’मूंगफली मेें अफ्लाटॉक्सिन का प्रभाव कम करने की पद्धति’ ’प्रताप मूंगफली तीन’ ’मूंगफली की कटाई उपरान्त प्रबंधन’ पुस्तक शामिल है।

By Udaipurviews

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