राजस्थान का वेल्लोर भैंसरोडगढ़ दुर्ग

   राजस्थान का वेल्लोर भैंसरोडगढ़  दुर्ग चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा कस्बे से 7 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की एक विशाल घाटी के मध्य पर्वत शिखर के अंतिम छोर पर स्थित है। चंबल और बामणी नदियों के संगम स्थल पर बसा यह दुर्ग तीन ओर से वर्ष पर्यंत वृहद जलराशि से आप्लावित रहता है। इस दुर्ग को तीन तरफ से सुरक्षित और दुर्जेय बना दिया है। केवल उत्तर में, निकटवर्ती पहाड़ी से इस दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीतना संभव था। यह एक अभेद्य विकट दुर्ग है जो जलदुर्ग की श्रेणी में आता है। नैसर्गिक सुरक्षा कवच युक्त इस दुर्ग का प्राकृतिक परिवेश बहुत कुछ गागरोन दुर्ग से मिलता जुलता है।
   भैंसरोडगढ़ दुर्ग चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है। आज भी लगभग 5 हजार की आबादी दुर्ग के परकोटा परिसर में रहती है। वेल्लोर के किले की भांति पानी से घिरा होने के कारण इसे राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है। यहां महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह की छतरी बनी हुई है, जिसे पंच देवला कहते हैं। दुर्ग परिसर में गणेश, माताजी, दो विष्णु मंदिर और चार शिव मंदिर बने हुए हैं। यह दुर्ग अब पूर्ववर्ती शाही परिवार द्वारा संचालित एक लग्जरी विरासत होटल में परिवर्तित हो गया हैं।
   भैंसरोडगढ़ दुर्ग का निर्माण 1741 ईस्वी में सलूंबर के रावत केसरीसिंह के पुत्र रावत लालसिंह द्वितीय द्वारा किया गया। मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह द्वितीय द्वारा भैंसरोडगढ़ को एक जागीर के रूप में प्रदान किया गया। भैंसरोडगढ़ के रावत और कोटा महारावल के मध्य संबंध अच्छे थे। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय जब कोटा के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो रावत ने कोटा को सैन्य सहायता दी थी। इस दुर्ग पर अलग-अलग समय में विविध राजवंशों ने शासन किया। इस दुर्ग पर डोड शाखा के परमारों, राठौड़ों, शक्तावतों, चूंडावतों और हाड़ाओं ने शासन किया। लेकिन अधिकांशत: यह मेवाड़ के अधिकार में रहा।
   कर्नल टॉड के अनुसार यह दुर्ग

महुआ के राठौड़ राजकुमार को उस समय इनायत हुआ जब उसने मेवाड़ के अपमान का बदला लेते हुए जैसलमेर के भाटी शासक का वध कर दिया। लेकिन इस राठौड़ सामन्त की रानी ने अपने पति के एक आक्षेप से रुष्ट होकर दुर्ग से नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली। वह मेवाड़ के राजवंश से संबंधित थी। अतः भैंसरोडगढ़ राठौड़ दुर्गाधिपति से छीन लिया गया तथा परमार सामंत को मिला जो कि निकटवर्ती बेगूं ठिकाने का दामाद था। उसने एक बार शतरंज खेलते हुए मजाक में अपनी पत्नी के पीहर पक्ष पर ताने कसे तथा कटाक्ष किए जिससे बेगूं के सरदार ने उसे सबक सिखाने के लिए भैंसरोडगढ़ पर आक्रमण कर दिया तथा परमार दुर्गाधिपति लड़ते हुए काम आया।
तत्पश्चात भैंसरोडगढ़ लालसिंह चूंडावत को इनायत हुआ, जिसने मेवाड़ के महाराणा को प्रसन्न करने के लिए राज परिवार के निकट संबंधी राणा जगतसिंह के भाई नाथा जी की, जो एक संत पुरुष थे, उपासना करते हुए हत्या कर दी। उसके उत्तराधिकारी मानसिंह के शासनकाल में भैंसरोडगढ़ पर मराठों का हमला हुआ। मराठों ने किले की प्राचीर के समानांतर विशाल खाई खोद डाली और किले पर प्रबल आक्रमण किया। लेकिन पहाड़ियों पर रहने वाले मीणों, भीलों और आदिवासियों के जवाबी प्रतिरोध के कारण मराठों को इस दुर्ग का घेराव उठाना पड़ा। कर्नल टॉड के अनुसार इस दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने भी जोरदार हमला किया था और यहां के सभी पुराने मंदिरों और इमारतों को नष्ट कर दिया था। इस आक्रमण के बाद भैंसरोडगढ़ में कोई भी प्राचीन निर्माण नहीं बचा।
भैंसरोडगढ़ दुर्ग अपनी विशिष्ट संरचना, स्थापत्य कला और शिल्प सौंदर्य के कारण प्रसिद्ध है। चंबल और बामणी नदियों के मध्य बसा यह दुर्ग देखने में मनोहारी एवं आकर्षक है। यहां पर अक्टूबर से मार्च माह में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यहां पर फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, स्वीडन, इंग्लैंड और अफ्रीकी देशों के पर्यटक अधिक संख्या में आते हैं। राजस्थान के इस ऐतिहासिक किले की स्थापत्य कला और शिल्प सौंदर्य का नजारा अत्यधिक मनोहारी रहता है। इसलिए दुनिया भर के पर्यटकों के लिए यह लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।

  • पन्नालाल मेघवाल, वरिष्ठ लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार।
By Udaipurviews

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Related Posts

error: Content is protected !!