यदि हम पर्यावरण की चिंता करेंगे तो भगवान आसानी से मिल जाएंगे: डॉ. राजेन्द्रसिंह
हमें प्रकृति से उतना ही लेना है जितना अपने पसीने से पुनः लौटा सकंे: डॉ. राजेन्द्रसिंह
उदयपुर 04 जुन। सागर से उठा बादल बनके, बादल से गिरा जल हो करके। फिर नहर बना नदियां गहरी, तेरे बिन प्रकार तू ही तू ही है। उक्त पंक्तियों के माध्यम से विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर शनिवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘धरती एक है जल एक है।’ विषयक व्याख्यान कार्यक्रम में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् व मैगसेसे पुरस्कार विजेता पानी वाले बाबा डॉ राजेंद्र सिंह ने प्रकृति की व्यापकता और उसमें समाहित एकरूपता को रेखांकित किया । डॉ. सिंह ने बताया कि भारत का विज्ञान आध्यात्म से जुड़ा है और भारतीय वैदिक दर्शन में पर्यावरण की आस्था में चिंतन मनन की भावना निहित है। प्रकृति में जो सौंदर्य, समरसता, सहजता निहित है। वह मानवीय जटिलताओं के कारण खंडित होती जा रही है। प्रकृति में ही परमात्मा के भाव को स्पष्ट करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि यदि हम पर्यावरण की चिंता करेंगे तो भगवान आसानी से मिल जाएंगे। पंच महाभूत भूमि, गगन, वायु ,अग्नि ,नीर से ही हम सब बने हैं और वैदिक दर्शन में इनको संयुक्त रूप को ही भगवान कहा गया है।
डॉ. सिंह ने कहा कि पर्यावरण दिवस मनाने की आवश्यकता ही इसलिए आई कि हमने अपनी जीवन पद्धति से प्रकृति का बिगाड़ किया है। आरोग्य जीवन पद्धति का व्यावहारिक उपयोग नहीं किया है। महात्मा गांधी की कही बात ‘प्रकृति सभी की जरूरतें पूरी कर सकती है लेकिन किसी एक व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं कर सकती’ के द्वारा उन्होंने कहा कि हमें प्रकृति से उतना ही लेना है जितना अपने पसीने से पुनः लौटा सकंे। प्रकृति की सेहत बनी रहे इसके लिए हमें छोटे-छोटे प्रयासों से शुरू करके प्रकृति को पोषित करने का कार्य करना होगा ।
डॉ. सिंह ने जलवायु बदलाव को आज की प्रमुख पारिस्थितिकी आपदा बताया जिसमें न केवल तापमान में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है साथ ही कृषि उत्पादकता में भी कमी देखी जा रही है। मिट्टी पानी में जितना बदलाव आया है उसे देखते हुए हमें प्रकृति को प्यार दुलार देना होगा तभी प्रकृति हमें जीवन के लिए स्थान दे पाएगी। झीलों के शहर से पानी बाबा राजेंद्र सिंह ने इस मौके पर आह्वान किया कि विकसित शहर का शिक्षित समाज गंदे पानी को अच्छे पानी में नहीं मिलने देने के प्रयास के द्वारा ही खोई हुई अविरल निर्मल नदियों के अस्तित्व को पुनः स्थापित कर सकेगा।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर एस.एस . सारंगदेवोत ने कहा कि हमें विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता तभी संभव होगी जबकि छोटे-छोटे प्रयास करें और उन्हें पूर्णता प्रदान करें। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक और औद्योगिकीकरण के दुष्परिणाम के कारण सौर ऊर्जा का प्राकृतिक व्यवस्था प्रभावित हो रहा है और ऊर्जा पुनः वायुमंडल में मुक्त होने के स्थान पर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रही हैं। हमें अपने भारतीय सनातन विद्या एवं वैदिक ज्ञान को अपनाकर पुनः प्रकृति की ओर लौटना होगा । उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के क्रम में परंपरागत जल स्त्रोत 250 वर्ष पुराने कुएं और बावड़ी को डबोक की पंचायतन यूनिट में पुनः जीवित करने का कार्य किया जा रहा है।
इस मौके पर डॉ गजेन्द्र माथुर, प्रो. मंजू मांडोत, प्रो. सुमन पामेचा, डॉ.़ बलिदान जैन, डॉ.़ रचना राठौड, डॉ. अमिया गोस्वामी, डॉ. अमी राठौड, डा. लिलि जैन, डॉ. लाला राम जाट, डॉ. सुनिता ग्रोवर, डॉ. एसबी नागर, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. बबीता रशीद, डॉ. सीमा धाबाई, डॉ. मानसिंह, डॉ. शाहिद कुरैसी, डॉ. ममता कुमावत, सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर मौजूद थे।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत डॉ रचना राठौड़ ने किया, धन्यवाद डॉ मंजू माण्डोत ने ज्ञापित किया जबकि संचालन डॉ कुल शेखर व्यास ने किया।
प्रो. सिंह का किया सम्मान:-
पिछले 40 वर्षो से पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने हेतु पानी वाले बाबा के नाम से विख्याात डॉ. राजेन्द्र सिंह का उपरणा, माला, शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।