नई दिल्ली। जनपथ पर स्थित उड़ान (द सेंटर ऑफ थिएटर आर्ट एंड चाइल्ड डेवलोपमेन्ट) और इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की ओर से सम्वेत सभागार में शनिवार को सायं हुए बाल रंग महोत्सव में नन्हे रंगकर्मी बच्चों ने राजस्थान के डूंगरपुर जिले की वीर आदिवासी बाला काली बाई के जीवन पर संजय टूटेजा द्वारा निर्देशित एक नाटक का मंचन कर 75 वर्ष पूर्व इस वीर बालिका द्वारा अपने गुरु की रक्षा के लिए अग्रजों की गोली से स्वयं को बलिदान करने की ऐतिहासिक घटना को जीवन्त कर दिया।
यह नाटक आजादी का 75 वाँ अमृत महोत्सव के अन्तर्गत भारत सरकार के संस्कृति मन्त्रालय के इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र और दिल्ली की संस्था (आई जी एन सी ए) ‘और उड़ान’ संस्था के सौजन्य से बाल रंग महोत्सव के अन्तर्गत आयोजित हुए ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अग्रसेन मेडिकल कॉलेज और भारतीय शिक्षा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा इंटर नेशनल वैश्य फ़ेडरेशन के सलाहकार जगदीश मित्तल, आई जी एन सी ए के आयोजक अचल पण्ड्या और विशिष्ट अतिथि जन सम्पर्क विशेषज्ञ गोपेंद्र नाथ भट्ट ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर रंगकर्मी एवं वरिष्ठ पत्रकार संजय टुटेजा के दिशा निर्देशन में पांच बाल नाटकों का मंचन हुआ जिसमें चार देश भक्ति के नाटक टुटेजा निर्देशित वीर बाला काली बाई के साथ ही प्रभात सेंगर एवं नोमिता सरकार द्वारा निर्देशित ‘मैना का बलिदान, योगेश पंवार द्वारा निर्देशित ‘सरफ़रोशी की तमन्ना,नुपार्थ चौधरी एवं अंशु द्वारा निर्देशित ‘आज़ादी की कहानी’ और हिमांशु दास एवं गौरांग गोयल द्वारा निर्देशित हास्य नाटक ‘भोला राम का जीव’ का मंचन किया गया। सराहनपुर के झुग्गी झोंपड़ी के बच्चों ने भी नाटक के पात्र बन सभी को प्रभावित किया।
उड़ान के निदेशक और कार्यक्रम के दिशा-निर्देशक एवं संयोजक संजय टूटेजा ने बताया कि ‘उड़ान’ संस्था द्वारा इस वर्ष इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र और अन्य संस्थाओं की मदद से आठ बाल रंगमंच शिविर आयोजित किए गए है और इतने ही नाट्य मंचन किए गए । रंगमंच शिविर में करीब दो हजार बच्चों को रंगमंच के गुर सिखायें गए।
उन्होंने वीर बाला काली बाई के नाटक की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि के बारे में बताया कि दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में गुजरात से सटे आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में 75 साल पूर्व आज़ादी से ढाई महीने पहलें 19 जून 1947 को एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी जिसमें रियासत के रास्ता पाल गाँव की एक बहादुर आदिवासी बालिका काली बाई ने अपने गुरु सेंगा भाई की जीवन रक्षा और पाठशाला संचालक नानाभाई खांट के लिए अपने सीने पर अंग्रेजों की गोली खाई थी । यह नाटक इस वीर बाला काली बाई की अपने गुरु के लिए की गई महान शहादत की याद को समर्पित किया गया। इसी प्रकार कानपुर की राजकुमारी मैना का अंग्रेजों द्वारा किया गया कत्ल और देश भक्ति के नाटक ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ ‘आज़ादी की कहानी’ को दर्शकों ने सराहा।