दूसरों की सफलता को भी बर्दाश्त करना सीखे : आचार्य कुशाग्रनंदी 

– शाम को भजन संध्या एवं आरती हुई 

उदयपुर, 22 जुलाई। पायड़ा स्थित पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में देवश्रमण आचार्य कुशाग्रनंदी महाराज, मुनि अजयदेव व भट्टारक देवेंद्र विजय संघ के सानिध्य में शुक्रवार को मंदिर में सैकड़ों श्राकव-श्रविकाओं ने नित्य नियम पूजा, शांतिधारा, जलाभिषेक व सामायिक किया। प्रचार संयोजक संजय गुडलिया, दीपक चिबोडिया तथा प्रवक्ता प्रवीण सकरावत ने बताया कि ब्रह्मचारिणी आराधना दीदी व अमृता दीदी ने मूलनायक भगवान का पंचामृत सरोष्ठी से विशेष महाभिषेक किया। 

इस दौरान आयोजित धर्मसभा में आचार्य कुशाग्रनंदी महाराज ने कहा कि दूसरों की सफलता को भी बर्दाश्त करना सीखे। ये दुनिया का रिवाज है कि जितनी सफलता मिलती जाती है उतने ही दुश्मन तैयार होते जाते है। परिस्थितियां ऐसी बनती है कि जिनसे प्रेम करते है उनसे अलग रहना पड़ता है चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते है। घरवाले जिस मजबूर कर दे उसे बाहर वाले मजबूत नहीं बना सकते है। घर का ढांचा बिगड़ा हुआ है तो घर वाले सहयोगी नहीं शकुनी बनते है।  पत्थर के तीर्थं की अपनी महिमा है उससे इंकार नहीं लेकिन जीवित तीर्थ नहीं बने तो उन्हें संभालेगा कौन। जीवन में कम से कम एक तीर्थ जरूर बनाने का संकल्प लेना चाहिए।  उन्होंने कहा कि थोड़े से विवेक का उपयोग करेंगे तो अपने पड़ौस में रहने वाले को भी तीर्थ बना सकते है। आज कम से कम एक व्रत जरूर धारण करें कि घर, दुकान या ऑफिस में शब्दों का पहला वार मैं नहीं करूंगा। 

भट्टारक देवेंद्र विजय ने कहा कि कि कुछ साल पहले दुनिया वालों को यकीन होता था कि जैन समाज के लोग गलत काम नहीं करते है। इसीलिए राजा के खजांची जैनी होते थे। ये यकीन अपने आचरण के आधार पर बनाया था। अब यकीन धीरे-धीरे कम होने लगा है हालांकि अब भी सम्मान है तो बुर्जुगों की मेहनत के कारण। उसका फल हम पा रहे है। दूसरों की सफलता को हजम करना आसान नहीं होता है। 

By Udaipurviews

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