प्रताप की 482 वीं जयंती पर
महाराणा प्रताप की सैन्य नीति का सामरिक महत्व
विषय पर संगोष्ठी का हुआ आयेाजन
युवा प्रताप को रॉल मॉडल मान प्रेरणा ले – कर्नल इन्द्रजीत सिंह घोशाल
उदयपुर 01 जून / वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप की 482 वीं जयंती पर जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से बुधवार को कुलपति सचिवालय के सभागार में ‘‘ महाराणा प्रताप की सैन्य नीति का सामरिक महत्व ’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य वक्ता पूर्व ले. जनरल एन.के. सिंह ने कहा कि महाराणा उदय सिंह से लेकर महाराणा अमर सिंह के घटनाक्रम को विस्तार से समझाते हुए कहा कि 27 वर्ष की उम्र में उनके उपर सेनापति का भार आ गया और उन्होने पूरे दमखम के साथ अंजाम दिया। पूरे जीवन भर छापामार युद्ध पद्धति से युद्ध किया। जीवन कभी कोई युद्ध नहीं हारा और अंत तक मुगलों की सेना केा पिछे हटना पडा। प्रताप धर्म, सहिष्णु एवं उदार मनोवृति के थे। इसके प्रमाण हमें मेवाड की धर्मोपल्ली में हकीम खां को प्रधान सेनापति बनाना न केवल हरावल दस्ते में था बल्कि सेनापति के सम्मान से शुषोभित किया। उन्होने कहा कि सोशल मिडिया पर पढने को मिलता है कि उनकी तलवार 25 से 30 किलो की थी, उनका भाला 85 किलो का था, यह तथ्य गलत है उनकी तलवार का वजन लगभग 3 से 4 किलो का था, उनका भाला 6 से 7 किलो का था, वे हमेशा अपने पास दो तलवारे रखते थे।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भगवान राम के बाद उनके वंश में एक महाराणा प्रताप ही है जिन्हे श्रद्धा भाव के साथ याद किया जाता है। प्रताप सभी वर्गो को साथ लेकर चलते थे उनकी सेना में हर वर्ग की भागीदारी थी। प्रताप ने युद्ध स्वाधीनता के लिए लड़ा न की हार जीत के लिए। तथ्यों के आधार पर इतिहास के पुनर्लेखन की जरूरत है। प्रताप ऐसे व्यक्तित्व के धनी है जिन्हे इतने वर्षो के बाद भी श्रद्धा और आदर के साथ याद किया जाता है। प्रताप का पूरा जीवन कठिनाईयों भरा रहा। हमारे देश का चहुमंखी विकास करना है तो हम सब को संगठित होकर रहना होगा एवं देश प्रेम की भावना को जगाना होगा। प्रताप के समर्पण, त्याग एवं मानवीय मूल्यों का युवाओं को अनुसरण करना चाहिए। प्रताप साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक थे उनकी टीम में हर जाति, वर्ग के लोग थे। वे 36 कोम को साथ लेकर चलते थे। मानवीय मूल्यों का जब कभी मूल्यांकन होगा तब प्रताप का कोई स्थान नहीं ले पायेगा। प्रताप ने कभी कोई युद्ध नहीं हारा और जीवन भर स्वाधीनता के लिए लडते रहे। प्रताप आर्थिक नीति के प्रति भी सजग थे, हर क्षेत्र में व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की जिससे उनके समय किसी प्रकार कोई पलायन नहीं हुआ।
मुख्य अतिथि कर्नल इन्द्रजीत सिंह घोशाल ने कहा कि महाराणा उदय सिंह ने युद्ध क्षेत्र व अपने कार्यकलापों को करने के लिए ऐसे स्थान का चयन किया जहॉ दर्रे, घाटिया व पहाडिया हो जहॉ युद्ध करने में आसानी हो और दुश्मनों को भगाा जा सके। उन्होने युवाओं का आव्हान किया कि वे प्रताप को अपना रॉल मॉडल बनाये और उनके जीवन से प्रेरणा ले आगे बढे।
संगोष्ठी में विख्याम हिन्दी की कवयित्री कविता किरण ने प्रताप पर अपनी कविता सुना सभी मंत्र मूग्ध कर दिया।
‘‘ छोडी है जिसने हल्दी घाटी में निशानियॉ, इतिहास जिसके शौर्य की कहता है कहानियॉ, मेवाड की इस धरा पर उस सपूत को नमन , राणा प्रताप आपके बलिदान को नमन, सर को कटा दिया , मगर झुकने नहीं दिया, शत्रु को अपने सामने टिकने नहीं दिया, विपदा – भूख – प्यास सब सहन किये मगर , जिते जी स्वाभिमान को मिटने नहीं दिया, पृृथ्वी पर ऐसा सूरमा हुआ न दुसरा, गूंजित है जिसके नाम से ये धरती और गगन, राणा प्रताप आपके बलिदान को नमन ……. ’’
प्रारंभ में निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी की जानकारी दी। संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास ने किया।