नौ फीट का विजय स्तम्भ, दरवाजे, मंदिर, कुण्ड सभी बनाए
उदयपुर, सुभाष शर्मा। चित्तौड़गढ़ जिले के एक युवक की मिट्टी और गोबर से ऐसी प्रतिकृति बनाई कि उस पर बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींच लेता है। कचूमरा पंचायत के नांदोली गांव के राहुल माली ने मिट्टी और गोबर ने छोटी—मोटी प्रतिकृति नहीं बनाई, बल्कि उसकी चौड़ाई पंद्रह फीट तथा लंबाई तीस फीट है। उसने 450 वर्ग फीट ऐरिया में चौदह किलोमीटर की प्राचीर वाले चित्तौड़गढ़ को समेटा है। जिसके अंदर उसने नौ फीट का विजय स्तम्भ, मीरां मंदिर सहित अन्य मंदिरों के अलावा दुर्ग की प्राचीर, उसके दरवाजे तथा कुण्डों को बनाया है। इसे बनाने में उसने हर दिन दो घंटे दिए और इस तरह उसने 46 दिनों की मेहनत के बाद इसे तैयार किया।
बीस वर्षीय युवक राहुल माली को बचपन से मिट्टी की प्रतिकृति बनाने में रुचि थी लेकिन इतनी बड़ी प्रतिकृति पहली बार बनाई है। इसे बनाने में उसका 650 रुपए खर्चा आया जिससे वह पेंट यानी रंग खरीदकर लाया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग उसने कई बार देखा और उसकी प्रतिकृति बनाने का विचार आया। इसके लिए खेत ही सबसे अच्छी जगह था, जहां इतनी बड़ी जगह मिल पाए। उसने पहले पेन्सिल से दुर्ग का नक्शा बनाया और उसके बाद उसी आधार पर विजय स्तम्भ, बुर्ज, प्राचीर, छतरियां, मंदिर, कुण्ड तथा रास्ते बनाए। दस अक्टूबर से उसने इसकी शुरूआत की और अब पूरी तरह तैयार कर पाया है। इसके लिए उसने पहले ऐसी मिट्टी जुटाई जिससे प्रतिकृति ना सके। उसमें गोबर मिलाकर हाथों से आकार देना शुरू किया।
राहुल बताता है कि उसके बनाए चित्तौड़गढ़ दुर्ग की प्रतिकृति में उसने नौ फीट का विजय स्तम्भ, दो महल, जिसमें से एक बड़ा और दूसरा छोटा है। पानी के दो कुण्ड, जिनमें पानी भी भरा हुआ है। शिव, गणेश, त्रिदेव, मीरा तथा माताजी का मंदिर, दरवाजों के अलावा डेढ़ फीट हाइट की प्राचीर जिस पर छतरियां भी बनाई है।
पहले बना चुका था कई प्रतिमाएं
राहुल माली बताता है कि वह पहले कई तरह की प्रतिमाएं तथा शिव लिंग बना चुका है। उसने कई बच्चों को भी इस हुनर से अवगत कराया। उसके पदमावती फिल्म देखने के बाद दुर्ग और किलों की प्रतिकृति बनाने का निर्णय लिया। जिसके बाद उसने पहले छो छोटे—छोटे किले भी बनाए। तब उसका काम देखकर एक निजी स्कूल संचालक ने उसे अपने यहां शिक्षक की नौकरी भी दी थी। वह अब बीएड कर रहा है।
राहुल ने बताया कि उसके पिता किशनलाल किसान हैं। उसके शौके लिए वह उसका खर्चा उठा नहीं सकते। इसलिए वह मिट्टी तथा गोबर को मिलाकर प्रतिकृति बनाता, जिसमें कोई खर्चा नहीं आता। बस मेहनत ही लगती है। कई बार उसके शौक के चलते परिवार वालों ने उसे टोका भी लेकिन जब इसी हुनर के चलते उसे स्कल में काम मिला तो पिता भी कुछ नहीं कहते।