उदयपुर, 6 जून। भारत के पूर्व सर्वेयर जनरल एवं महात्मा गांधी काशी विश्वविद्यालय, बनारस के पूर्व कुलपति डॉ. पृथ्वीश नाग ने कहा कि वैश्विक स्तर पर पोषणीय विकास करने के लिये सयुंक्त राष्ट्र मंच के माध्यम से भूस्थानिक प्रौद्योगिकी यानी दूर संवेदन तकनीकी एवं भौगोलिक सूचना तंत्र को अपनाया जाना समय की आवश्यकता हो गयी है।
डॉ. नाग मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग द्वारा आयोजित किये जा रहे 21 दिवसीय भूस्थानिक प्रौद्योगिक प्रशिक्षण कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर पोषणीय विकास के एजेंडा में कोई भी भूखा नहीं रहेगा, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य शिक्षा, जल एवं स्वच्छता, लिंग समानता एवं महिला सशक्तिकरण को प्रमुखता से शामिल किया गया है। उन्होंनंे बताया कि पूर्व में ‘पोषणीय विकास’ तथा ‘भूस्थानिक प्रौद्यागिकी का उपयोग’ की अलग-अलग चली आ रही अवधारणाएं अब समन्वित हो गयी हैं,
अब तक साढ़े छः हजार उपग्रह हुए हैं लांच: डॉ. बैरा
भारतीय अन्तरिक्ष शोध संगठन (इसरो) के पश्चिमी केन्द्र जोधपुर के महाप्रबंधक एवं वैज्ञानिक डॉ. ए.के. बैरा ने बताया कि वैश्विक स्तर पर अब तक 6 हजार 542 उपग्रह यान लांच किये जा चुके हैं और इनमें से 3 हजार 372 वर्तमान में क्रियाशील हैं। आज अंतरिक्ष पृथ्वी के विभिन्न तत्वों एवं संसाधनों को समझने, उनके मूल्यांकन एवं उपयोग, सरकारी एवं गैर-सरकारी गतिविविधों की निगरानी एवं प्रबंधन का केन्द्र बन गया है।
कार्यशाला दौरान अतिथियों ने भूस्थानिक प्रौद्योगिक प्रशिक्षण की जानकारी देने वाले पोस्टर का विमोचन किया और संभागियों को इसमें दी गई विषयवस्तु के बारे में जानकारी प्रदान की।
उद्घाटन के अध्यक्षीय उद्बोधन में कार्यवाहक कुलपति प्रो. सी.आर. सुथार ने आवश्यकता जताई कि आज वैश्विक स्तरीय सोच का स्थानीय समस्याओं के निराकरण में उपयोग किया जाना जरूरी है।
आरंभ में पृथ्वी विज्ञान संकाय के अध्यक्ष प्रो. बी.आर. बामनिया एवं कार्यशाला की समन्वयक तथा भूगोल विभाग की अध्यक्ष प्रो. सीमा जालान ने प्रशिक्षण के उद्देश्य एवं महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यशाला का संचालन डॉ. उर्मी शर्मा ने किया जबकि आभार प्रदर्शन की रस्म डॉ. देवेन्द्र सिंह चौहान ने अदा की।